घर में सूतकी चेहरा लेकर ना बैठो तो मंगल ही मंगल है।।
समाधान ही समाधि है।।
सब विरोधों को अपने साथ रख कर जीये ऐसा बाप की स्मृति श्राध्ध है।।
अकेला कमाई करके जगत को मुक्ति प्रदान करें ऐसे बाप की स्मृति शिव स्मृति है।।
स्पेन में चल रही राम कथा के पांचवें दिन आज भी अनेक बात पूछी गई थी।।किसी ने पूछा था कि श्राद्ध पक्ष चल रहा है हमारे बेटे ने नया घर लिया है तो श्राद्ध पक्ष में जा सकते हैं? बापू ने कहा की कथा पूरी होने के बाद जब आप घर जाओ तब रामचरितमानस और भगवत गीता लेकर गृह प्रवेश करना।या अपना कोई सद ग्रंथ लेकर जाओ। घर में और घट में प्रवेश करने का कोई मुहूर्त नहीं होता।। क्योंकि एक बहिर यात्रा और अंतर यात्रा के मुहूर्त नहीं होते।।
बापू ने कहा कि मेरी राय ली है तो इतना करना। नहीं तो श्राद्ध पक्ष में कोई न कोई लोग ना भी करते हैं।। किसी का मृत्यु होने के बाद सूतक लगता है लेकिन घर में सूतकी चेहरा लेकर ना बैठो तो मंगल ही मंगल है।। सूतक क्रिया करने के बाद भगवान के पास जाना चाहिए क्योंकि हमने जो पंक्ति उठाई है वहां दशरथ की क्रिया के बाद भरत राम के पास जाते हैं।। जो कर्तव्य कर्म था हमने किया कोई निषेध नहीं।। लेकिन किसी काल में महापुरुषों ने कहा होगा।। वह नर सूतकी है जो कृष्ण नहीं भजते ऐसा नरसिंह मेहता कहते हैं।। बापू ने कहा कि मैं ऐश्वर्य शब्द का इस्तेमाल करता हूं,सौंदर्य शब्द का कम करता हूं क्योंकि सौंदर्य ज्यादा नहीं टिकता।। अभाव का ऐश्वर्य टिकता है।। सादगी श्रृंगार हो गई आइनो की हार हो गई!
वह सारे खजाने उठा कर ले गया।
एक फकीर की जो दुआ ले गया।।
मैं कैसे उम्मीद छोड़ू कि वह मुझे मिलेगा नहीं!
जाते समय वह मेरा पता ले गया!
ऐसा परवाज साहब ने लिखा है।।
बापू ने कहा कि मेरी कथा ना चल सके इसके लिए बहुत तांत्रिक प्रयोग भी,अनुष्ठान भी चल रहे हैं। बहुत समय से चलता है।लेकिन अब पक्का हुआ तुम्हें सबको बता रहा हूं।। उनके पीछे बड़े-बड़े लोग लगे हुए हैं। लेकिन बापू ने कहा उसका भी स्वीकार है।कोईवैरभाव से कोई और कोई प्रेम भाव से हमें भज रहा है।।
टैगोर के आखिरी समय में वह बोले कि जीवन वृक्ष के मेरे सभी पत्ते गिर गए हैं केवल फल ही फल है और फल है तो लोग पत्थर मारेंगे ही!
समाधान ही समाधि है।।
बापू ने बताया कि शास्त्र हमें प्रिस्क्रिप्शन लिख देता है मगर सेवन हमें करना पड़ता है। दोष मिटाया जा सकता है और दुख हटाया जा सकता है।।
बापू ने बताया कि अकेले हो जाओ। जप भी ना करो। विचार आए तो साक्षी बनकर रहो। अपने इष्ट ग्रंथ का अवलोकन और दर्शन करो।।गुरु की स्मृति में दी हुई चीज का सेवन करो।।अवसर मिले तो सज्जन का संग करो। वार्तालाप करो।।समझदार लोगों से विवाद ना करो। यह पांच वस्तु का प्रयोग करके देखो।।
मातृशक्ति की स्मृति की बात में आज गणेश जननी- दुर्गा,राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री यह पांच मातृशक्ति जहां दुर्गा हमें अंदर से रक्षा करती है दुर्ग बाहर से रक्षा करता है।। यह पांच प्रकृति है प्रकृति का अर्थ है प्राकृष्ट यानी की श्रेष्ठतम एकमात्र है वह।। राधा तत्व मातृ शक्ति है। हमारा प्रेम योग और वियोग की रक्षा करती है। वैसे महालक्ष्मी और सरस्वती एवं सावित्री के प्रकृति से पूरा ब्रह्मांड चलता है।।
पितृ स्मृति में दशरथ के निधन के बाद भरत क्रिया करते हैं। तब वशिष्ठ को दान देते हैं जहां सिंहासन वस्त्र राज्य धन भी दे देते हैं। बापू ने कहा कि हमारे पितृओं ने जो डगर कंडारी है उनको याद करना वह श्राद्ध है।। पिता का प्रगाढ मित्र पितृ तुल्य है।राम ने जटायु की क्रिया की।निवास ऊंचा हो करतूती हल्की हो वह गीध है।।ऐसे अधम और आमिष भोगी को भी राम ने योगी जो मांगते हैं ऐसी गति दी है।।जगत पिता महादेव शिव का स्मरण पितृ श्राद्ध है। सब विरोधों को अपने साथ रख कर जीये ऐसा बाप की स्मृति और अकेला कमाई करके जगत को मुक्ति प्रदान करें ऐसे बाप की स्मृति शिव स्मृति है।।
कथा प्रवाह में नामकरण एवं उपवित संस्कार और विद्याभ्यास के बाद विश्वामित्र राम लक्षमन को लेने आते बै वो प्रसंग और राम जी की ललित नर लीला का आरंभ बापु ने संक्षिप्त रुप से बताया।।