*कबीर अपने आप एक वट है।।*
*जीन से हमें धन्यता का अनुभव हो वही सच्चा धन है।।*
*कबीर क्रांतिकारी,भ्रांतिहारी और शांतिहारी महापुरुष है।।*
*साधु किसीका द्रोह न करे,जरुरत होने पर विद्रोह जरुर करे!*
*बटु बिस्वास अचल नीज धरमा।*
*तिरथराज समाज सुकरमा।।*
*-बालकॉंड*
*बर तर कह हरि कथा प्रसंगा।*
*आवहिं सुनहिं अनेक बिहंगा।।*
*-उत्तरकॉंड*
इन्हीं बीज पंक्ति का गान करते हुए आरंभ में सदगुरु कबीर साहेब की समग्र चेतन को प्रणाम करते हुए बापू ने कहा कि यह तीर्थ क्षेत्र को प्रवाही मंदिर कहता हूं।।जहां दो साधक एक काल में तत्वा और जीवा- नास्तिकता में डूबे।उन्हें बाहर निकालने के लिए कबीर साहब अमरकंटक से पैदल चल के चातुर्मास यहीं रुके। और बुद्धिवाद के वृक्ष की कूंपले खुद कबीर साहब ने सींच कर वटवृक्ष बनाया जो आज पूरे विश्व को प्रेरणा और प्रकाश दे रहा है।। काशी से आए हुए प्रधान पुरुष हुजूर साहब को भी याद करते हुए बापू ने कहा प्रयाग में कुंभ 12 साल में पूर्ण होता है।।लेकिन यह कबीर कुंभ 18 बरस के बाद पूर्ण हुआ।।विकास भी विश्रामदायक होना चाहिए।।जब कावेरी स्नान करने दक्षिण में व्रत के लिए में जाता था तब कावेरी कुंभ का विचार प्रस्तुत किया था।।ऐसे ही यह कबीर कुंभ है। कबीर के लिए क्या कहे? प्रिय है ऐसा कहने से कौन अप्रिय वह प्रश्न भी उठेगा।। लेकिन कबीर के नजदीक रहने का प्रयत्न करें।। कबीर खुद एक वटवृक्ष है।। रामचरितमानस में वट,वड, बटु,वटु ऐसे 11 शब्द मिलते हैं।।और कथा के मनोरथी नरेश भाई की भी 11वीं कथा है! जिन धन से धन्यता का अनुभव हो वही सच्चा धन है।।कबीर वट की बहुत शाखाएं हैं यह विश्वास का वट है और विश्वास की असर कबीर के बाद के साहेबों में दिखती है।।
रामचरितमानस में साहिब शब्द भी उन्हीं की असर है। वट शाश्ववत्ता का प्रतीक है।।कबीर वट वैराग्य का वट है।। विवेक का भी वट है।।कबीर विचार का, विद्रोह का वट है।। अंधश्रद्धा, पाखंड,पांडित्य,केवल बौद्धिकता के सामने विद्रोह करते हैं।।साधु कभी किसी का द्रोह ना करें लेकिन जरूर पडने पर विद्रोह जरूर करते हैं।। मुक्ति के लिए भूमि नहीं भूमिका चाहिए। इसीलिए अंत समय पर कबीर काशी छोड़कर मगहर में चल गए थे।।
कबीर क्रांतिकारी,भ्रांतिहारी और शांतिकारी महापुरुष है।। यह पूर्णता का, रचनाओं का, साहस का,भजन का और भोजन का भी वट वृक्ष है।। हम यहां झूलने के लिए आए हैं।। हमारी सनातन परंपरा में अक्षय वट, यह कबीर वड,शांति निकेतन में टैगोर का एक वट, दुधरेज की जगह में भी एक वट और तलगाजरडा में सावित्री वट भी है।।
यहां एक पंक्ति बालकांड से और एक उत्तराखंड से ली गई है।।
फिर ग्रंथ की प्रवाही और पवित्र परंपरा में सात कांड और पहले कांड में सात मंत्र की बात करते हुए पंचदेव का पूजन की बात बताई गइ।।और वंदना प्रकरण में विविध वंदनाओं के बाद गुरु वंदना और हनुमत वंदना का गान करते हुए आज की कथा को विराम दिया गया।।
भरुच वायुमंडल में आंठवी बार और कबीरवड वायु मंडल में पहली बार कथागान पर ११वीं बार कथा कर रहे मनोरथी नरेशभाइ और उषाबेन पटेल परिवार में से र्द्र,हरिओम,हीनाबेन,नेहाबेन द्वारा अपने भाव रखे।।
तत्वा और जीवा की अनुराग भक्ति को कायम करने खुद कबीर साहब अमरकंटक से पदयात्रा करते हुए पानी सिंचने आये और वही पौधे आज ३ किलोमीटर में फैलकर कबीर वट बना है।।
आरंभ पर कबीरपंथी साहेब परंपरा के साहेबश्री और महामंडलेश्वरों वाराणसी काशी से प.पू.पंथ हूजूर आचार्य अर्धनामी साहबने दिव्य भाव रखे।।
महामंडलेश्वर गुरुचरणदास महाराज,शिवराम साहब-मोरबी,गणेशदासजी-नडियाद संतराम मंदिर,निर्गुण दास जी,राजकोट कबीर मंदिर नरसंग दास जी,वडोदरा कबीर आश्रम प्रीतमदास जी,खीम दास जी,दूधरेज वडवाला से कणीराम जी,पाळियाद महामंडलेश्वर पू.निर्मळा बा,भयलू बापु,जूनागढ कबीर मंदिर महामंडलेश्वर जगजीवन दास जी,हाथीजन महामंडलेश्वर महादेव दास बापु,तोरणिया से राजेन्द्रदास बापु साहेब चरणों और महा मंडलेश्वरों के शुध्ध हस्तों से दीप प्रागट्य हुआा।।