सत्य ना बोल सको तो कम से कम प्रियंवदा हो जाओ।
निंदक ठीक से सो नहीं पाएगा।।
इर्षा करने वालों की आयु कम होती है।।
निंदा का स्थान जीभ है।।
इर्षा मन में रहती है।।
द्वैष आदमी की आंख में बसता है।।
हमारी आसूरी वृत्ति को मारने के लिए रामकथा कालिका है।।
रमणीय भूमि गोकर्ण(कर्णाटक)में बह रही रामकथा के चौथे दिन आरंभ में दो श्लोक का पूरा पठन पाठ किया
कूटस्थो च महाबाहू राम: कमल लोचन:….
ये अदभूत रामायण का मूल पाठ है।जहां रावण कहता है कि जानकी के सामने में राम का रूप लेता हूं तो क्या-क्या स्थिति होती है!- वह मूल पाठ जब रावण कुंभकर्ण को जगाता है और कहता है कि राम का रूप देखता हूं तो परनारी तो क्या ब्रह्म पद भी तुच्छ लगता है।।
बापू ने मौन के तीन प्रकार बताएं: क्रिएटिव मौन, नेगेटिव मौन और पॉजिटिव मौन।।
रामायण के तीन नारी पात्र -उर्मिला क्रिएटिव मौन है श्रुति कीर्ति मौन रही लेकिन नेगेटिव है।। श्रुति नकारात्मक होती है और मांडवी का मौन पॉजिटिव मौन है।।भरतमांडवी को मिले नहीं फिर भी मांडवी बिल्कुल पॉजिटिव रही।।
सत्ता अपने स्वार्थ तक सक्रिय रहती है और सत्य निरंतर सक्रिय रहता है।।मौन बड़ी साधना है। महर्षि अरविंद और रमन मौन साधक रहे। पुराण काल में महर्षि विश्वामित्र बहुत मौन रहे।। मौन से एक ऊर्जा पैदा होती है।। शब्दों से दूसरों को छला जा सकता है लेकिन शब्दों को नहीं छल सकते हैं।।
दूसरे मंत्र में ऋषि कहता है जब वक्त बोलने लगे मेरा मन मेरी वाणी में प्रतिष्ठत हो और मेरी वाणी मेरे मन में प्रतिष्ठित हो! वाणी स्त्री है फिर भी मन और वाणी का गठबंधन है।। मेरे मन में हो वही मेरी वाणी से निकले और मेरी वाणी में मेरा मन पूरा का पूरा डूबा हुआ रहे।। वक्त बोले इससे पहले रक्षा करना बापू ने कहा कि सत्य ना बोल सको तो कम से कम प्रियंवदा हो जाओ। बुद्ध काल की प्रियंवदा की बात बापू ने विस्तार से बताई और बुद्ध आखिरी पल में प्रियंवदा के पास आए और पैर पर दो आंसू गिरे हरि को जो भूलना नहीं उसे हरि भी नहीं भूलता।। प्रेम क्या नहीं कर सकता! बापू ने कहा कि सत्य दांई आंख है। करुणा बांई आंख है और तीसरा नेत्र अग्नि का जो शिव की तीसरी आंख है, वह प्रेम है।। प्रेम ज्वाला है, शिव का अग्नि नेत्र है। और भूख भी आग जठराग्नी,प्रेम अग्नि,क्रोध अग्नि और इर्षा की भी अग्नि होती है।। निंदक ठीक से सो नहीं पाएगा इर्षा करने वालों की आयु कम होती है।। निंदा का स्थान जीभ है। इर्षा मन में रहती है।द्वैष आदमी की आंख में बसता है।।मोह और महा मोह में ज्यादा फर्क नहीं।। लेकिन मोह रूपी राक्षस को भगवान राम मार सकते हैं लेकिन मोह वृति को कालिका मरती है।। असुर को राम मार सकते हैं और आसूरीवृत्ति को रामेश्वरी जानकी मार सकती है।। हमारी आसूरी वृत्ति को मारने के लिए राम कथा कालिका है।। फिर नरसिंह की हूंडी को विस्तार से गाया और सबको समझाया।।