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कालिका जीवन और मृत्यु का समन्वित रूप है।। रामायण में जीवन और मृत्यु का समन्वित स्वरूप है।।

व्यास पीठ जीवन और मृत्यु दोनों सिखाती है।।

राम के पास ३१वॉं बान कहां से आया?-अदभूत रामायण की कहानी।।

गोकर्ण-कर्णाटक की भूमि से प्रवाहित रामकथा के तीसरे दिन बापु ने बताया की रामकथा को मैं प्रेमयग्य कहता हुं,सायंकाल के कार्यक्रम प्रेमसभा है और यग्यकुंड के पास दो-पांच के बीच होता है वो प्रेमवर्षा है।।

अदभूत रामायण में सिताजी को कालिका बनती दिखाया गया है।।

रावण के साथ युध्ध शुरु होता है।कुंभकर्ण मेघनाद आदि वीरगति को प्राप्त हो चूके है।।राम रावण के बीच भयंकर द्वंदयुध्ध शुरु होता है।।वाल्मिकी जी ने अदभूत रामायण की रचना की है इसलिये इसे भी आदि रामायण कहा जाता है।।रावण को वहां बहूत बलवान बताया है।

फिर प्रक्षेप आता है।त्रिजटा जानकी के पास आयी।रावण किसी भी तरह मरता नहि है वो सुनकर जानकी दुखी होती है।त्रिजटा सपने की बात सुनाकर थोडीढाढस भी देती है।ये सब लीला है।। सीता को कहा गया की पूरा राक्षस समाज युद्ध में है तो आपका फर्ज है युद्ध में जाए।। पति की संघर्ष की बेला में नारी पति के संग खड़ी होती है वह भारतीय संस्कृति में बार-बार मिलता है।। एक तरफ ढाढस देती है, एक तरफ फर्ज की बात करती है।। और सीता अशोक वाटिका में खड़ी हुई।। पृथ्वी मां को प्रणाम किया। एक रूप में युद्ध मैदान में आई। भगवान राम को यह पता नहीं,तब प्रभु ने विभीषण की ओर देखा यह रावण मरता क्यों नहीं? विभीषण ने कहा नाभि में अमृत कुंभ है इसलिए वह मरता नहीं है।।

हमारे यहां एक अमृत है जो मरने नहीं देता। एक संजीवनी है जो मृतक को जीवित करती है।। कालिका जीवन और मृत्यु का समन्वित रूप है।। रामायण में जीवन और मृत्यु का समन्वित स्वरूप है व्यास पीठ जीवन और मृत्यु दोनों सिखाती है।। रावण के गुरु शुक्राचार्य थे। देवताओं के गुरु बृहस्पति है।। रावण के सदगुरु शंकर है। रावण शुक्राचार्य के पास संजीवनी लेने जाता है। योगी नहीं कुयोगी है और शुक्राचार्य संजीवनी देते है।। ब्रह्म रंध्र से अमृत टपकता है और नाभि कुंड में इकट्ठा होता है।।३० तीर से रावण नहीं मरेगा ३१वां तीर चाहिए और राम के पास कहां आया?

अनेक संदर्भ में एक कथा है: कुबेर रघु के पास जाकर कहता है कि मेरा भाई रावण पुष्पक ले गया है। फिर रघु रावण के पास पुष्पक मांगने जाते हैं। रावण मना कर देता है। रघु ने तीर उठाया सरसंघान किया और ब्रह्मा दौड़कर आए।।कहा कि आपके हाथ से रावण की मौत नहीं रघु के हाथ से नहीं रघुनाथ राम के हाथ से है।। बाण ऊपर चढ़ गया है उतरेगा नहीं। ब्रह्मा ने देखा बान ले लिया और रामचरितमानस के अरण्य कांड में कुंभक के पास आए और कहा कि जब राम आए और मंत्र पूछे तब यह बाण उसे देना है।।

राम बहुत दुखी हुए तब भास हुआ कि मेरी शक्ति आ गई है और कालिका बनकर जान की मैदान में तांडव कर रही है।। अनेक रूप धारण किए। राम खोजते हैं कि सीता तो सौम्या है! द्रौपदी जहां गई शोक उत्पन्न किया। सीता जहां गई अशोक उत्पन्न किया।। कालिका के पैर के नीचे महाकाल खड़ा है और कोई तो कहते हैं कि रावण को राम ने नहीं काली ने मारा है।। सीता महान है राम सीता के पति है। पार्वती भी महान है शंकर पार्वती के पति है। यहां कोई छोटा बड़ा नहीं है।।

बापू ने कहा कि शास्त्रों ने आदेश दिया है विषयी 9 घंटा साधक 6 घंटे और साधु-3 घंटा नींद ले सकता है।।

यदि यह छ लक्षण दिखे तो बुद्धपुरुष में कोई शंका नहीं होनी चाहिए::

१-औदार्य हम सह ना पाए इतना उदार होता है। २-सौंदर्य-भीतरी सौंदर्य। स्मरण,शील का सौंदर्य और भजन का सौंदर्य।।

३- आद्रता संवेदनशीलता बहुत होती है।।

४-गांभीर्य- हिमालय जितनी और समुद्र जितनी गहराई धैर्य भी होता है।।

५-शौर्यता-

६-धैर्यता-भी होता है।।

रामचरितमानस की रचना अनादि शिव ने की।अपने मानस में रखी। सुसमय पाकर पार्वती को सुनाई।।कालांतर में कागभूषंडी जी और कागभुसुंडि ने अवसर देखकर गरुड़ को सुनाई। फिर गंगधरा नीचे उतरी और प्रयाग में आई।। भारद्वाज और याग्यवल्क्य के बीच संवाद हुआ।। तुलसी ने अपने गुरु से बार-बार सुनी और 1631 में रामनवमी के दिन रामायण का प्रागट्य हुआ।।

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