Homeगुजरातआत्मलिंग सत्य है,गोकर्ण प्रेम है और भद्रकाली करुणा है।।

आत्मलिंग सत्य है,गोकर्ण प्रेम है और भद्रकाली करुणा है।।

दूसरों का आनंद ना देख पाने वाला कलयुग का इंद्र है।।

देश,काल और पात्र देखकर ही दान करना चाहिये।।

लोकमान्यता अग्नि है हमारी तपस्या के जंगल को भस्मीभूत कर सकती है।।

ज्ञान और धन आए ऐसे ही बांट देना चाहिए क्योंकि ज्ञान और समृद्धि का शिंग ज्यादा टिकेगा नहीं।।

भरोसा श्रद्धा और विश्वास का आध्यात्मिक संतान है।।

मेलिंकेरीगोकर्ण कर्णाटक से प्रवाहित रामकथा के दूसरे दिन बापू ने बताया इस भूमि पर तीन वस्तु का संगम है:भगवान शिव का आत्मा लिंग स्वरूप, भद्रकाली और गोकर्ण।।

वैसे भगवान कृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण है, भगवान राम भी सोलह कलाओं-यद्यपि कोई १२ कला कहते हैं-लेकिन राम भी सोलह कलाओं से पूर्ण है वैसे शिव भी १६ कलाओं से पूर्ण है।। शिव के बारे में १६ कहना संकीर्णता है, सीमित करना नहीं चाहिए।।क्योंकि गोस्वामी जी कहते हैं सकल कला।।कोई ६४ कला कोई ३२ कला की बात करते हैं।। शिव को नापना मुश्किल है।। लेकिन १६ कलाओं समझने के लिए द्वादश ज्योतिर्लिंग वह १२ कला है और चार और रखें तो आत्म लिंग,पर ब्रह्म लिंग,केवल लिंग और विश्वास के लिंग।। जब तक विश्वास की स्थापना नहीं होती कंई रहस्य जाने बिना रह जाएंगे।।

बापू ने कहा आत्म लिंग सत्य है। क्योंकि शिव परम सत्य है।गोकर्ण प्रेम है और भद्रकाली करुणा है।। रावण की माता कैकसी शिव उपवास है। इसलिए भ्रांति टूटनी चाहिए की माताओं को शिव पूजा का अधिकार नहीं।। वह पूजा करती थी इंद्र को इर्षा हुई बापू ने कहा दूसरों का आनंद ना देख पाने वाला कलयुग का इंद्र है।। सर्वधर्म प्रार्थना में आत्म लिंग शिव तुं.. शब्द है।। यह कर्नाटक विद्वानों,संगीत और संस्कृति की भूमि है।यहां भी गोपाल आता है। जीसस के प्रसंग में, बुध्ध और महावीर के प्रसंग में भी गोपाल आता है।। शिव को पता लगता है रावण आत्म लिंग के लिए आया लेकिन लंका योग्य स्थान नहीं है।। हमारे गुजरात की गंगा सती भी कहती है: कि ऐसे पात्र के आगे अच्छी वस्तु नहीं रखनी चाहिए बापू ने कहा जो बहुत धनवान है उसे मैंने कथा दी नहीं। मेरा पूरा रिकॉर्ड देखिए शायद कोई अपवाद ही होगा। इंद्र आए तो भी में कथा ना दूं।।शास्त्रों ने कहा है देश,काल और पात्र देखकर ही दान करना भद्र का मतलब कल्याण है।।यह कराल काली नहीं कल्याणकारी है।।

संगीत की असर गाय और हिरण पर होती है। संगीत चलता है तब शेर मृग और गाय का शिकार नहीं करता। यहां की दंत कथा में गाय जमीन में जाती है कर्ण दिखते हैं। तुलसी जी ने लिखा है जिनके श्रवण समुद्र समाना।

कथा तुम्हारी सुभग सरि नाना।।

पूरा वेद मंत्र चौपाई में उतारा गया है। रावण ने गाय के कान बचा लिए। समाज के रावण कम से कम हमारा यह कर्ण श्रवण भक्ति सलामत रखे।।

गाय के हर एक अंग का महत्व दिखाते हुए बापू ने कहा गाय का पूंछ भी महत्व का है। यह गौ माता की प्रतिष्ठा है।।प्रतिष्ठा तीन प्रकार की होती है: लोक प्रतिष्ठा, वेद प्रतिष्ठा और ब्रह्म प्रतिष्ठा।।ब्रह्मआदि देवों ने गाय के शरीर में निवास करने की बात की वह गाय की ब्रह्म प्रतिष्ठा है।। यदि सावधानी न हो तो प्रतिष्ठा नुकसान करती है। लोकमान्यता अग्नि है हमारी तपस्या के जंगल को भस्मीभूत कर सकती है गाय जूगाली करने में सबसे आगे है। कुछ सुना है वह ध्यान से मनन करना जूगालीहै।।गाय की जीभ अपने बच्चों को चाट चाट कर साफ करती है और गाय पुकारती है।। संधि काल आता है वो रजोगुणी पुकारना और अपने बछड़े याद आते हैं।। बछड़े को तब तक चाटेगी जब तक गंदकी साफ ना हो। परमात्मा ने आश्रितों की गंदकी चाट-चाट कर वात्सल्य से हमारे काम आदि दोष ले लिए हैं।। गाय की आंख करुणा से भरी है।ओशो ने कहा हम आंख गाय की लेकर आए हैं। गाय की गुदडी बैलेंस देती है वैसे सुख और दुख में हम मांगे की गाय जैसी गुदडी दो। हम बैलेंस कर सके।।गाय के शींग में एक ज्ञान का शिंग दूसरा धन का शिंग है। वहां क्षण मात्र तिल भी टिक नहीं सकता।। ज्ञान और धन आए ऐसे ही बांट देना चाहिए क्योंकि ज्ञान और समृद्धि का शिंग ज्यादा टिकेगा नहीं।। गाय का दूध परम धर्म का नाम है। गाय के आंचल धर्म अर्थ काम और मोक्ष है ठीक से दोहन हो तो सब कुछ मिलेगा।। पंचगव्य पवित्र है। गोबर में भी एक अपनी खुशबू होती है।। गाय एकमात्र पशु है जिनकी सवारी हम नहीं करते हैं।।

बापू ने आज याद किया १०-१२ साल पहले अंबाजी में राम कथा थी और आज के दिन रुखड बाबा का जन्म मनाया था।। उसी को याद करते हुए संकीर्तन रास कीर्तन भी हुआ।।

वंदना प्रकरण में जगत के माता-पिता की वंदना।

जनक सुता जग जननि जानकी।

अतिसय प्रिय करुणा निधान की।।

ता के जुग पद कमल मनावऊं।

जासु कृपा निर्मल मति पावउं।।

राम के नाम हजार है। दुर्गा के हजार नाम। सीता के हजार नाम।।अनेक नाम में राम नाम विशेष है राम नाम का वंदन करते हुए नाम वंदना प्रकरण का गान और संवाद हुआ। राम का नाम आदि अनादि है। सबसे पहले शब्द प्रगटा वो राम है। राम भी राम नाम के गुण का वर्णन नहीं कर सकते।।बापू ने कहा कि भरोसा श्रद्धा और विश्वास का आध्यात्मिक संतान है।।

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