रामकथा कान का मुखवास है।।
जिसका जीवन पूरा फलित हो गया उसे पत्थर खाने की तैयारी रखनी पड़ेगी!
अध्यात्म जगत में विश्व का सबसे बड़ा आधार पादुका है।।
पादुका जिसके घर में हो वहां एक नहीं तीन-तीन देवी विराजमान है:पा-पार्वती,दु- दुर्गा और का-कालिका।।
साधु का एक ही कूल है सबके प्रति अनुकूल रहना।।
क्या है अष्टभुजा?
आद्यशक्तिमॉं अंबा नवदुर्गा की आराधना के दिनों में कर्णाटक के गोकर्ण से बह रही रामकथा के पांचवे दिन आरंभ में अलग-अलग जिज्ञासाए के बारे में बात करते हुए बापू ने कहा:रामकथा बकवास नहीं, काकवासहै।।कान का मुखवास है।। लेकिन अगर ऊपर बैठे हैं तो घाव सहन करने ही पड़ते हैं! कोई टीका करके पूछते हैं कि रामकथा क्या है?प्रवचन है?आख्यान है?व्याख्यान है?भाषण है?बकवास है? क्या है? बापू ने कहा कि आलोचक या तो विवेचक रवींद्रनाथ टैगोर को मिलने के लिए आया। टैगोर बहुत बीमार थे,व्हीलचेयर में बैठे थे।किसी ने मना किया।गुरुदेव ने सुना,तबीयत ठीक नहीं थी फिर भी कहा कि मैं उन्हें मिलुंगा। और मिलते हुए टैगोर ने कहा कि अब इस वृक्ष में सब पत्ते गिर गए हैं। अब केवल फल ही फल है,और यहां सब फल होंगे तो पत्थर तो आएंगे ही! जिसका जीवन पूरा फलित हो गया उसे पत्थर खाने की तैयारी रखनी पड़ेगी।। बुद्ध को प्रहार करने में परिवार के लोगों ने भी कसर नहीं छोड़ी थी।।
बापू ने कहा कि दुनिया में सबसे श्रेष्ठ आधार क्या है?- पादुका।। ना बेरखा, ना माला, ना नाम, ना रूप आधार के बिना ना शांति न संतुष्टि मिलेगी। चित्रकूट के प्रसंग में भरत ऐसा कहते हैं।।अध्यात्म जगत में विश्व का सबसे बड़ा आधार पादुका है।। जैसे कृष्ण अवतार में वस्त्र अवतार हुआ वैसे रामचरितमानस में पादूका अवतार हुआ।। गुरु को आवरण कहा है लेकिन वेदांत में कहते हैं गुरु मल विक्षेप, आवरण हटा देते हैं।।आवरण को हटाने वाला गुरु है ऐसा विपरीत वक्तव्य भी आया।।गुरु आवरण है। कृष्ण जगतगुरु है और द्रौपदी के वस्त्र बचाने के लिए कृष्ण आवरण बनकर आए हैं।। गुरु हमारा ओढणा है। गुरु सदा सुहागन रखता है।। गुरु हमारे मन को विसर्जित करता है क्योंकि वह निर्मल है, विमल है।। गुरु विक्षेप है। कभी-कभी हमें डिस्टर्ब भी कर देता है।। कोई ऐसा सूत्र पकड़वा देंगे कि हम विक्षिप्त हो जाएंगे।।
तुलसी ने साधु को कपास के फूल जैसा बताया जो किसी का आवरण को ढंकने का काम करता है।बापू ने कहा की पादुका जिसके घर में हो वहां एक नहीं तीन-तीन देवी विराजमान है:पा-पार्वती,दू- दुर्गा और का-कालिका।। नवरात्र हो कि ना हो तीन देवियां सदा काल विराजमान रहती है। इसलिए राम कथा भाषण है कि आख्यान है कि व्याख्यान है की प्रवचन?से झंझट में क्यों पड़ते हो! साधु बंधन में रहता है। वचन के बंधन में भी रहता है और आश्रित के द्रढाश्रय में भी साधु रहता है। जहां हमारा पक्का भरोसा होगा वहां साधु होगा। साधु की कोई जाति नहीं, ना नीति शास्त्र, ना कोई आचार संहिता, कोई कूल नहीं होता, कोई गोत्र भी नहीं।। नाम, रूप, गुण,दोष से मुक्त होता है।। साधु का एक ही कूल है सबके प्रति अनुकूल रहना।। शंकराचार्य भी ऐसा कहते हैं।।
बापू ने कहा कथा में पांच निष्ठा होती है: एक-गुरु निष्ठा। दो-नाम निष्ठा। तीन-ग्रंथ निष्ठा।चार- शिवनिष्ठा जो हनुमंत निष्ठा, विश्वास निष्ठा भी कहेंगे और पांच-शब्द निष्ठा।।
उनसे उम्मीदें वफ़ा न रख ‘फ़राज़’
जो मिलते हैं किसी ओर से और होते हैं किसी और के!
-अहमद ‘फराज’
बापू ने कहा कि आज सुबह-सुबह यज्ञ कुंड के पास बैठा था और यमुना की धारा की तरह स्मृति आने लगी। तो उठकर कमरे में गया और कागज पेन लेकर स्मृति जितनी भी याद है वह लिखने लगा। और बापू ने कहा कि शिव और राम का अवैध एक्यक्य? ऐसे ही जगदंबा और सीता का एक्य क्या क्या है? वह मुझे स्मृति के रूप में आने लगा।
राम प्रतिष्ठा का अनुभव करना है तो शिव निष्ठा ना छोड़ो।
शिव और राम दोनों जगदीश है। दोनों अंतर्यामी है। दोनों व्यापक है। दोनों निर्गुण है। दोनों मन आदि से पर है। दोनों काल भक्षक है और इंद्रियों से पर है।। दोनों का नाम कल्पतरु है। दोनों के धाम मोक्ष दायक है: अयोध्या और काशी मोक्ष नगरी है। दोनों का चरण रति में आग्रह रहता है। दोनों कृपालु है और दोनों के चरित्र अगाध है। ऐसा कहकर यह दोनों की पंक्तियां भी बापू ने बताई।
बापू ने कहा कि शिव वैष्णव और शाक्तों के बीच मध्यकाल में भी बहुत लड़ाई चली थी।।
ऐसे ही जगदंबा और सीता में साम्य है एक्य है।। दोनों जगदंबा है। दोनों आदि शक्ति। दोनों उद्धव स्थित संहारकारिणी है। दोनों सिद्धि धात्री है।दोनों पतिव्रता धर्म की शिरोमणि है।
बापू ने कहा कि मां दुर्गा के हाथ कितने? महालक्ष्मी और महा सरस्वती को चार-चार भुजा है। हंसवाहिनी को विस भुज भी है और कालिका अष्टभुजा वाली है।।सब मिलाओ तो ३२ भुजा होती है और उनका चौथा भाग अष्टभुजा है।।
सीता का एक नाम भू-जा है। भूमिजा। व्याकरण को अलग-अलग कर देखें क्योंकि तुलसी व्याकरण से ज्यादा आचरण का आग्रही है। तो ऐसी भुज भूमि से ८ वस्तु प्रकट होती है: गंध-धरती की समाधि में गंध निकले तो समझना एक भुजा निकली है। जल संवेदना का प्रतीक है।।वनस्पति १८ भार वनस्पति है।तेल निकलता है। स्निग्ध और स्नेह है।औदार्य है। धातु निकलती है। धैर्य है और पृथ्वी में स्थिरता भी प्रकट होती है।।
ऐसे ही कथा पंचतत्व-पृथ्वी,जल,वायु,आकाश,और अग्नि से भरी है।। साथ ही साथ कथा में शब्द सूर स्वर लय और ताल भी है।। गंध स्पर्श रस रूप और शब्द भी है।। साथ ही साथ नाम रूप लीला धाम और गुरु मुख भी है।।