यह परम तत्व का जलवा है, तमाशा नहीं है,अनुष्ठान है।।
भवसागर पार करने के लिए रामकथा दृढ़ नौका है
श्रध्धा गुरु पर,विश्वास गुरु के वचन पर और भरोसा गुरु के चरन पर होना चाहिये।।
यदि दूत बनना पड़े तो हराम के नहीं राम के दूत बनें।।
रामनाममहामंत्र, परम मंत्र,मंत्र राज,बीज मंत्र है
साधक चार प्रकार के होते हैं: तूफानी, बर्फानी, कुरबानी और शरमानी।।
बरफाच्छादित शुभ्र धवल शिखरों के तले दल लेक के तट पर मनोहारीफोरों की बर्षा के बीच श्रीनगर में चल रही रामकथा के दूसरे दिन बीज पंक्तियों के गान के बाद कहा कश्मीर की यह बड़ी पौराणिक भूमि है केवल हनुमान जी की कृपा से नव दिवसीय अनुष्ठान हो रहा है।। तब इस भूमि की विद्या,कला, चिंतन,5000 वर्ष से चली आई परंपरा,कइं धर्म का समावेश,मनीषी लोगों की यह भूमि कई रूप में महिमावंत भूमि है।।
पूछा गया कि कश्मीर के बारे में आप कुछ कहे। बापू ने कहा कल अरुण भाई और महामहिम ने बहुत कुछ कहा।। लेकिन एक पुस्तक-कश्मीर नामा अशोक पांडे ने लिखा है। हर चीज आपको मिलेगी। 5000 साल पहले से उठाया मीथ भी है। इतिहास के आधार पर अपना अवलोकन भी है।। और उसी का संक्षिप्त रूप सारांश एक छोटा सा पुस्तक गुजराती में है जो दंताली वाले स्वामी सच्चिदानंद जी ने लिखा है।। कश्मीर का इतिहास- जहां भूमिका में लिखा है।पूर्व में कौन थे, कौन आए फिर क्या हुआ,आज तक का इतिहास।जहां तथ्य भी है सत्य भी है।। यह दोनों ग्रंथ की ओर इशारा करता हूं मैं यहां भाईचारा,मोहब्बत,शांति,अहिंसा का संदेश देने आया हूं। फिर भी जो सत्य है वह सत्य है।।हमारा गोत्र हमारे ऋषि मुनियों के नाम पर थे। पहले ब्राह्मण और क्षत्रिय के गोत्र माने जाते थे। नाम नहीं गोत्र बोला जाता था। और यही पावन परंपरा का गोत्र था-कश्यप गोत्र। जो कश्मीर को लागू होता है कश्मीर के मूल में कश्यप है।।लेकिन न भूगोल इतिहास गणित का ज्ञान नहीं।।द्वैत अद्वैत को छोड़कर केवल रस पीना है।समरस होकर मौन का घूंट पियो ऐसा शंकराचार्य जी ने कहा है।। यह परम तत्व का जलवा है, तमाशा नहीं है,अनुष्ठान है।। अभी एक दो कथा जम्मू कश्मीर में करनी है। यहां सिविल ड्रेस में सुरक्षा कर्मी हमारी रक्षा के लिए घूम रहे हैं।।यह परम की झलक पाने का अनुष्ठान है।। जहां भी समरसता टूटी है ज्यादा बोल कर टूटी है। हमारे धाम में सुख है लेकिन हम सुखधाम नहीं। यह सुखधाम राम की कथा है।।
भवसागर पार करने के लिए रामकथा दृढ़ नौका है उनकी हवा के मुताबिक चलने देना।। छोटी नौका डूबती नहीं आदमी जितना छोटा जल्दी तैर जाएगा यहां 19 ऊंट वाली कहानी बापू ने दूसरे ढंग से सुनाइ: बापू ने कहा कि एक बुड्ढा मरने को था। उनके पास 19 ऊंट थे।।एक बेटी और दो बेटे थे सबको बुलाया और कहा मेरी बेटी को आधे ऊंट और मेरे छोटे बच्चे को चौथाई भाग और बड़े बेटे को पांचवा भाग दे दो।। लेकिन 19 के आधे, चौथाई और पांचवा हिस्सा नहीं हो सकता।। तब एक मार्गी साधु ऊंट लेकर आया।उसने अपना ऊंट मिलाकर 20 बनाए।। और 10 ऊंट बुढ्ढे की बच्ची को, पांचवा भाग बड़े बेटे को और चौथा भाग-पांच ऊंट छोटे बच्चों को दिये,19 हो गए।। वह अपना एक ऊंट लेकर चला गया! इसका मतलब है पंचतत्व का यह शरीर,पांच ज्ञानेंद्रिय, पांच कर्मेंद्रिय,मन बुद्धि चित्त और अहंकार मिलाकर 19 होते हैं। लेकिन सबको ठीक से संतुलित कोई गुरु ही कर सकता है।।
श्री का मतलब सीता भी होता है। श्री संप्रदाय में श्री गुरु का अर्थ है सीता जी गुरु है।।
वंदना प्रकरण में गुरु वंदना मध्य में है।। चार वंदना ऊपर चार वंदना नीचे है रामनाम रूपी दीप हमारे बीच में रखते हैं इसलिए अंदर और बाहर दोनों प्रकाश होता है।।
श्रद्धा विश्वास और भरोसा तीन बातें में बोलता हूं उस पर विद्वान,साक्षर,भाविक,भावक और भावुक सब कुछ बोलते रहते हैं।। मेरा गुरु कृपा से अनुभव है श्रद्धा गुरु में होनी चाहिए।।हमारी श्रद्धा व्यभिचारिणी है।हमारा सही ठिकाना नहीं सही घराना नहीं।।गुरु के समग्र अस्तित्व पर श्रद्धा विश्वास गुरु के वचन पर होना चाहिए,गुरु के शरीर पर नहीं।।अष्टावक्र हो, ध्रुव हो या शुकदेव हो।। और भरोसा गुरु के चरण पर होना चाहिए।।चरण भरोसे का मतलब वह चरण दूर चले जाए या निकट रहे संसार को समुद्र कहा सरोवर नहीं।। क्योंकि संसार और सागर में चार-पांच वस्तु मिलती-जुलती है। समुद्र में उथल पाल बहुत होती है। दूर से लगता है बहुत पानी है लेकिन प्यासा बहुत है।।पीते हैं तो खारा है।।शंकर समुद्र है लेकिन एक घट के पास कथा सुनने जाता है तृप्ति घडे का पानी ही दे सकता है।।समुद्र का दूसरा तट होता है दिखता नहीं है हम केवल जन्म देख सकते हैं लेकिन मृत्यु भी है दिखती नहीं है।।समंदर भी गहरा बहुत है। समंदर का चंद्रमा से संबंध है।।संसार का मन के साथ बहुत संबंध है मां के जितने दोष है समंदर में भी दिखाते हैं।।समुद्र को जितना नहीं,पार करना, तैरना और मौज करना है तो चौपाई की नौका के ऊपर सवार हो जाना है।। कल हनुमंत वंदना की और जल्दी में हमने हनुमंत तत्व क्या है वो नहीं कहा।। वाल्मीकि रामायण में हनुमान खुद को ईश्वर कहते हैं। शिव ईश्वर है तो हनुमान ईश्वर है।। ज्यादातर लोग कहते हैं हनुमान 11वेंरूद्र है।।(गत कथा में श्रीमद् भागवत के श्लोक का आश्रय लेकर हमने कहा था 11 रुद्र का सम्मिलन हनुमान है)
मानस में पहला परिचय किष्किंधा कांड में हनुमान का हुआ है। पूरी दुनिया में सुंदरकांड के पाठ होते हैं किष्किंधा कांड छोटा है। मध्य में है।30 दोहे का कांड है। वह हृदय है।।वह हनुमान सुग्रीव के प्रधान सचिव है वह पहले दर्शन है।।राम के दूत है यदि दूत बनना पड़े तो हराम के नहीं राम के दूत बनें।। हनुमान जानकी के सुपुत्र है, भरत के भाई है, मानस के पांच प्राण के रक्षक है और सेवक भी है।।
वंदना प्रकरण में सब की वंदना- सुर नर मुनि असुर सब की वंदना की।। ईश्वर की बनाई प्रकृति को रामचरितमानस ने श्रद्धा से सम्मान दिया है।। प्रकृति को ना मानना नास्तिकता है।। रामनाम की वंदना नाम महिमा विस्तार से की है।। रामनाममहामंत्र, परम मंत्र,मंत्र राज,बीज मंत्र है।।तुलसी जी कहते हैं शिव ने मानस की रचना करके मानस में छुपाया मैं अयोध्या में वही छपाया!!
साधक चार प्रकार के होते हैं: तूफानी-जो इंद्रियों पर दमन करते हैं। बर्फानी-जो शांत रहते हैं।।कुर्बानी जो समर्पित होते हैं और शरमानी अपनी साधना गुप्त रखते हैं।।
राम कथा के चार घाट का रूपक बताया और तुलसी जी ने बार-बार गुरु से सुनकर भाषा बध्ध करके दीनता के घाट पर कथा कहकर अयोध्या में प्रकाशित की और वहां से कर्म की भूमि पर भारद्वाज ऋषि के पास रामकथा का गायन शुरू होता है।।और भारद्वाज के तप ज्ञान और साधना के बारे में बताया गया।।