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सामाजिक-आर्थिक रुप से दूर दराज आदितीर्थ वासी भूमि सोनगढ(तापी) से ९५३वीं रामकथा का मंगलगान शुरु हुआ।

*दिन-१* *दिनांक-८ मार्च*
*आपको मिलने आया हूं,आप सावधान है,सचेत है फिर भी कहीं नींद आ गई है तो जगाने आया हूं*
*आप को जगा कर जाऊंगा नहीं,मेरे परिवार के साथ आपको मिला दूंगा।।*
*आप कहीं गए होंगे तो वापस बुलाने के लिए आया हूं।।*
*यह मोरारी बापू नहीं सनातन धर्म की व्यासपीठ आपका स्विकार कर रही है।।*
*सनातन धर्म पर हमारे,अवतार पर,ग्रंथो पर, साधु-संतों पर प्रहार बहुत हो रहे हैं,बहुत सोच समझ कर हो रहे हैं।।*
*इसलिए सविनय जागृत करने के लिए आया हूं।।*
*जलाराम बापा विरपुर के तीन विराट कदम बताये*
*सविनय संवाद स्विकार और संवेदना के सुर में 80 साल में मैं डेढ़ सौ साल का काम किया है,एक-एक पल जगत कल्याण के लिए खर्च की है।।*
 
गत साल चैत्र नवरात्र के दिनों में ‘मानस संवत्सर’ कथा में जीस कथा का बीज आरोपित हुआ,सामाजिक-आर्थिक रुप से दूर दराज कही जानेवाली वनवासी-आदितीर्थ वासी क्षेत्र के सोनगढ-व्यारा की भूमि,तापी विस्तार की वनभूमि,गुजराती के साहित्यकार (स्व.)सुरेश जोषी ने अपनी सुख्यात कृति ‘जनान्तिके’ में जीन भूमि का उल्लेख किया है,ऐसी सुगर फेक्टरी मैदान-गुणसंदा की भूमि से ग्यारह महिने के अंतराल में दूसरी और कथा क्रम में ९५३वीं रामकथा के आरंभ पर विश्व महिला दिन के उपलक्ष में यहां की आदितीर्थ वासी क्षेत्र की बेटीयों के हाथों से दीप प्रागट्य के बाद निमित्तमात्र मनोरथी जगुभाइ पटेल परिवार के महेशभाइ ने बहूत कम शब्दों में सजल नेत्रों से इतना ही कहा की:सच्चे मनोरथी यहां के लोग है।कथा में न आ सकें तो भी तीन टाइम भोजन-प्रसाद जरुर ग्रहण किजीयेगा!।।
*रामकथा कै मिति जग नाहि।*
*असि प्रतीति तिन के मन मांहि।।*
*नाना भांति राम अवतारा।*
*रामायन सत कोटि अपारा।।*
मंगलाचरण के बाद इन बीज पंक्तियों से कथा का आरंभ करते हुए बापु ने अनादिवासियों की भूमि को और इस भूमि में विधि-विध क्षेत्र के महापुरुष जिन्होंने सभ्यता संस्कृति और सनातन धर्म के लिए जीवन समर्पित किया सबको प्रणाम करते हुए बापू ने कहा:मैं आपको मिलने आया हूं। ऐसा होता है कि हर साल आपके पास आऊं।। आप सावधान है, सचेत है फिर भी कहीं नींद आ गई है तो जगाने आया हूं!आप को जगा कर जाऊंगा नहीं मेरे परिवार के साथ आपको मिला दूंगा।। आप कहीं गए होंगे तो वापस बुलाने के लिए आया हूं।। यह मोरारी बापू नहीं सनातन धर्म की व्यासपीठ आपका स्विकार कर रही है।।यह कथा आपकी है,आपके लिए है और आपके द्वारा है।।यदि यहां का प्रसाद भी आपके पेट में जाएगा तो दबे हुए सद्विचार प्रकट होंगे और मूल धारा का स्मरण होगा। किसी का विरोध करने नहीं,विनय करने के लिए आया हूं।। संवाद और स्विकार मेरा मंत्र है।। शबरी कुंभ में जब कथा गान किया था तब मैंने कहा था:
आ लौट के आजा मेरे मीत… वापस आ जाओ! सेवा के नाम पर,चमत्कार और प्रलोभन के नाम पर आपको अपने मूल से अलग करने के लिए जो प्रवृत्ति हुई है। लेकिन सनातन धर्म का एक मूल तलगाजरडा है जो आपको पुकार रहा है।। किसी ने आपकी सेवा की है फिर आपके मूल घर पर जिसे कोई द्वार या कोई वातायन नहीं ऐसे घर में आपका स्वागत है।।आप नहीं आएंगे तो हमें अधूरा लगेगा! हम सनातन धर्मी इसलिए रामायण,गीता,राम-सीता शंकर-पार्वती राधे-कृष्ण गणपति और हनुमान जी हमारे घर में होने चाहिए।। हमारा मूल क्या है उनका स्मरण रहना चाहिए।।
आज बापू ने बताया कि कभी-कभी कोई महापुरुष, अन्य धर्म के मिलने आते हैं लेकिन जब वह बात करते हैं तो मेरी साधुता के कारण उस वक्त में जवाब नहीं देता।। लेकिन विचारों की बात आती है तब समय आने पर मैं अपना विचार प्रकट करता हूं मैं ऐसे तैसे जहां-तहां नहीं बोलता।। सनातन धर्म पर हमारे,अवतार पर,ग्रंथो पर, साधु-संतों पर प्रहार बहुत हो रहे हैं।बहुत सोच समझ कर हो रहे हैं।। इसलिए सविनय जागृत करने के लिए आया हूं।
जो साधु चरित परिवार जलाराम बापा का परिवार, गिरधरराम बापा,जयसुखराम बापा,रघुराम बापा, भाई भरत और आखिर में दैवत!- इतनी पीढी का में साक्षी हूं। संत शिरोमणि जलाराम बापा को नीचा दिखाने के प्रयत्न हो रहे हैं तब निष्कुलानंद स्वामी का एक पद:
वेश तो लीधो वैराग्य नो,पण द्वैष रही गयो बहु दूर…
सदाव्रत जिसने लिया है उसे ही सदाव्रत का ख्याल आएगा।। अखंड राम उपासना जो परिवार ने की है और भोजलराम बापा के आशीर्वाद से अन्न क्षेत्र शुरू किया।।आशीर्वाद गुरु ही देते हैं और गुरु के ही आशीर्वाद लेने चाहिए।। पहला कदम अन्न क्षेत्र शुरू किया,फिर वीरबाई मां को भगवान की सेवा में अर्पण करना वह दूसरा कदम और यहां एक भी पैसा स्विकारने की मना करना वह वामन वीरपुर का तीसरा कदम था।।
बापू ने कहा की बहुत वैसे लोगों पर दया आती है इसलिए जागृत रहे, सावधान रहे।।
और सनातन धर्म की बड़ी पीठों को भी विवेक से एक बालक के नाते कहता हूं आप भी कुछ बोलो! सनातन धर्म समाज बनाता है भीड पैदा नहीं करता सनातन शब्द किसी धर्म को नहीं लगता। शाश्वत शब्द भी नहीं लगा है।।आकार सीमित होता है प्रकाश असीम होता है।।सम्मान सबका लेकिन हमारे मुल को पकड़ के रखिए।। प्रश्नोपनिषद में जो अथर्ववेद का उपनिषद है वहां भारद्वाज का पुत्र सुकेश अपने गुरु से पूछता है कि आपका राजकुमार ने मुझे पूछा है 16 कला का पुरुष के बारे में लेकिन मिथ्या भाषण करुं तो मैं मूल में से भी सुख जाऊंगा।। इसलिए सविनय संवाद स्विकार और संवेदना के सुर में 80 साल में मैं डेढ़ सौ साल का काम किया है। एक-एक पल जगत कल्याण के लिए खर्च की है।।
यह रामकथा का विषय के बारे में बताते हुए कहा कि रामकथा की कोई सीमा नहीं सबको प्रतीति है विविध भांती राम के अवतार हुए 100 करोड़ रामायण और 100 से अधिक रामायण मैंने भी देखा है।।
सात प्रकार के समिध यज्ञ में डालने से सात रंग की ज्वाला प्रकट होती है।। हमारा यह प्रेमयज्ञ है और तमाम साधना प्रेम तक पहुंचाती है और प्रेम परमात्मा तक पहुंचाता है।। प्रेमयज्ञ में सात प्रकार के समिध को:
*कुपथ,कुतरक कुचाली कलि कपट दंभ पाखंड।*
*दहन राम गुण ग्राम जिमी ईंधन अनल प्रचंड।।*
पहले समिध कुपथ है।। झूठ रास्ता जो तीन है चोरी करना झूठ बोलना और व्यसन करना।। गलत तर्क गलत चलन कलयुग कपट दंभ और पाखंड सभी को हम अग्नि को समर्पित करने से वह जलकर भस्म हो जाएंगे।।
बापू ने बताया ग्रंथ के सात सोपान और पंचदेवों की पूजा और वंदना प्रकरण में गुरुवंदना के बाद हनुमान जी की वंदना के साथ आज की कथा को कभी राम दिया गया।।
 
*कथा-विशेष:*
सोनगढ-आदितीर्थ क्षेत्र में चैतन्य प्रकटाने फिर आइ तलगाजरडी त्रिभुवनीय व्यासपीठ
साडे छे दशक से गंगा के पवित्र प्रवाही परंपरा की तरह निरंतर बह रही तलगाजरडी व्यासपीठ के प्रेमघाट से एकबार फिर कथा रसपान का मंगलाचरण हुआ।।
पूज्य बापु ने रामकथा को सार्वलौकिक,सार्वभौमिक और सर्व सुलभ बनाने का कार्य अपनी सरल सहज साधुता से किया है।।
आर्थिक और सामाजिक रीत से पीछडे ऐसे आदिवासी विस्तार स्वाभाविक ही अभाव ग्रस्त है।।
मोरारिबापु के आगमन से एक नया नवोन्मेश प्रगट रहा है।
इस से पूर्व १५ एप्रिल-२०२४ में धरमपुर खांडा क्षेत्र में बापु ने चैत्र नवरात्र के पावन दिनों में ‘मानस संवत्सर’ विषय पर कथागान किया था।।जो कथा क्रम की ९४३वीं रामकथा थी।उस वक्त मंगलाचरण में ही बापु ने आदिवासी क्षेत्र को आदितीर्थ क्षेत्र प्रस्थापित किया कर के विशिष्ट गौरव प्रदान किया था।और हमारे वनवासी बंधुओं के निर्मल प्रेम के प्रतिसाद में हर साल एक कथा इसी विस्तार में करने का वादा किया था।।इसलिये ग्यारह महिने के अंतराल में ही फिर व्यासपीठ का यहां आगमन हुआ है।।
तीन दसक पहले ९ ऑक्टोबर १९९५ में व्यारा के पास कथागान हुआ था,विषय था:’रामहि केवल प्रेमु पियारा’
कुल कथा क्रम की वो ४९७वीं रामकथा थी।।
ऐसे ये यहां की दूसरी और कुल कथा क्रम की ९५३वीं रामकथा हो रही है।।
अमरिका स्थित श्री जगुभाइ पटेल-जीन्हे बारडोली के लोग जगुमामा के लाडके नाम से पुकारते है-ने उस समय कथा मनोरथी बनने का लाभ लिया था।।
फिर जगुमामा इस कथा के मनोरथी बनने का सौभाग्य प्राप्त कर रहे है।।
खांडा की कथा के व्यवस्थापक बनकर तनुजा सेवा का लाभ प्राप्त करने वाले महुवा सुरत स्थित उद्योगपति श्री परेशभाइ फाफडावाला परिवार और टीम फिर एकबार अपने उद्योग कार्य में से समय निकालकर यहां भी समर्पित आश्रित होने का अवसर पाया है।।
खांडा की ‘मानल संवत्सर’ कथा ने आदिवासी तीर्थक्षेत्र में नया प्राण संचार किये थे ऐसा अनुभव स्थानिक निवासी और श्रावकों ने पाया था।।
ये विस्तार में निवास व्यवस्था बहूत कम मात्रा में उपलब्ध होने से श्रोताओं को थोडी असुविधा भुगतनी पडे ये समजते हुए परेशभाइ ने जगुमामा की ओर से पहले से सब की क्षमा मांगी है।।
*सौजन्य:नीलेशभाइ वावडिया*
*संगीतनी दुनिया परिवार-महुवा।।*

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