आत्म रति भजन का अंतिम पड़ाव है।।
अकेले रात को अकारण भजन अश्रु ला दे तो समझना भजन हृदय से प्रकट हुआ है।।
भजन आत्म रति हो जाता हो तब दृष्टि बदल जाती है।।
तांजौर से प्रवाहित रामकथा के आंठवे दिन बताया गया की रामचरितमानस में करीब 32 बार भजन शब्द का प्रयोग जहां-जहां हुआ सभी पंक्तियां को दिखाई।।रावण कहता है कि तामस देह के कारण में भजन नहीं कर पा रहा हुं।रावण की चालाकी है, क्योंकि असुर का बेटा प्रहलाद भी तामस देह है।।प्रह्लाद ने भजन किया,भजन का प्रचार भी किया और फिर भक्त शिरोमणि बना है।।
तुलसी जी की अन्य पुस्तक दोहावली,कवितावली, गीतावली,रामाज्ञा,विनय पत्रिका,कृष्ण गीतावली सभी में भजन परक पंक्ति है।।यह भजन की व्यापकता दिखाता है।।आत्मा केवल श्रवण से,दर्शन से, प्रवचन के कारण काम नहीं होगा,अनुभव भी काम नहीं आएगा।।आत्म रति हो जाए तब काम बनेगा।। उपनिषद में बृहदारण्यक उपनिषद् में याज्ञवल्क्य मैत्रेयी के सामने जो सूत्र कहते हैं वह भजन की धारा में उपयोगी लगता है।। वहां कहा है: मैत्रेसी! आत्मनो वा दर्शनिय वा…. यह मंत्र कहा गया।।आत्मा का दर्शन सब का दर्शन है।आत्मा का श्रवण,निश्चय यह सब जान सकता है लेकिन इतना विज्ञान पर्याप्त नहीं।।आत्मरति है तो सब कुछ पर्याप्त है।।
इसलिए भरत कहते हैं:
जनम जनम रती राम पद यही वरदान न आन।
राम आत्मा है।।आत्मरती भजन का अंतिम पड़ाव है किस क्रम से भजन अवतरित होता है?भजन की यात्रा पांच मुकाम पर से जाती है, यह मेरा अनुभव है। सबके अपने अनुभव है।गलत भी हो सकता है।। एक-भजन पहले देह में प्रकट होता है।।पड़ा तो है ही!लेकिन कली की भांति खुलता है।।यह बहुत स्थूल स्थान है।। कोई भजनिक भजन का गान करें, गजल,कविता,ऊंचाई से उतरी हुई कविता भजन है योगी लोग कहते हैं:योग पहले देह शरीर को असर करता है।मगर यह मेरा मार्ग नहीं,रुचि भी नहीं।। यह कली काल न साधन दूजा।
जोग जग्य जप तप व्रत पूजा।
रामही सुमिरिय गायहि रामहि।
संत सुनिय राम गुन ग्राम ही।।
दूसरा-भजन मन के स्तर पर आ जाता है। तुलसी ने शरीर के स्तर के भजन को इतना आदर नहीं दिया जितना मन के स्तर से भजन को दिया।। मन नाचने लगे।जैसे मीरा,चैतन्य,जलालुद्दीन रूमी,सूफी नाचे है। कृष्ण नाचे है।।
राम भजन सुनु सठ मना- ऐसा लिखते हैं और तुलसी जी यह भी कहते हैं श्री रामचंद्र कृपालु भज मन!
हमारी पहचान पद प्रतिष्ठा जैसे बाहरी वस्त्रों से ही होती है।।मैं वक्ता हूं, धार्मिक हूं, इतनी पहचान नहीं आप श्रोता है यह तो ऊपर की पहचान है।।
तीन-भजन का तीसरा पड़ाव हृदय है। किसी को दिखाना नहीं।अकेले रात को अकारण भजन अश्रु दे तो समझना भजन हृदय से प्रकट हुआ है।।
चार-आत्मा तक भजन पहुंचता है। वह टिकाऊ तब होता है जब आत्मरती हो जाए।। चिंता मत करना पहले स्तर पर हो तो भी प्रकट हुआ वह भी काफी है आत्मा श्रवण,आत्म दर्शन,आत्मा निश्चय पर्याप्त नहीं आत्म रति होनी चाहिए।।भजन आत्म रति हो जाता हो तब दृष्टि बदल जाती है।।
कथा प्रवाह में विहंगावलोकन करते हुए अयोध्या कांड में गुरु वंदना से आरंभ हुआ।। चारों भाई ब्याह करके घर आए।अयोध्या में नित्य नए उत्साह का वर्धन होता है।।सबको सब प्रकार का सुख मिला क्योंकि रामचंद्र के मुख को देखकर सब सुखी है।। लेकिन बार-बार ऐसा नहीं होता है। धन होता है धन्यता नहीं।पद होता है पादुका नहीं होती।सत्ता होती है सत् नहीं मिलता।सामग्री होती है संस्कार नहीं दिखते।वाणी होती है आचरण नहीं होता है। प्रसंग सब है लेकिन प्रेम नहीं होता।। सुख-दुख सापेक्ष है।सुख मिले वरदान समझो और दुख मिले तो प्रसाद समझकर स्विकार करो।।भरत मिलाप का प्रसंग आया।पादुका को आधार बनाकर भरत लौटते हैं।।अयोध्या कांड के समापन में भरत चरित्र का गान हुआ और अरण्य कांड में भगवान 12-13 साल चित्रकूट में रहे।।अत्रि से मिले।बाद में पंचवटी में आए जहां लक्ष्मण ने पांच प्रश्न पूछे।।खर-दूषण को वीरगति मिली और सीता हरण का प्रसंग आया आखिर में शबरी को मिलने के बाद अरण्यकांड का समापन हुआ।समापन पर संत के लक्षण बताए गए किष्किंधा कांड में सुग्रीव से मैत्री हुई।किष्किंधा कांड हृदय है।तीन कांड इधर,तीन कांड उधर। बीच वाला बिल्कुल छोटा तीन दोहे का कांड है।।जहां हनुमान जी लंका दहन के लिए निकले सीता खोज के लिए चार टूकडी बनी और हनुमान जी की अगवानी में खोज करने के लिए निकले और हनुमान जी ने लंका दहन किया।। सीता की खोज करके आए और सुंदरकांड के समापन पर समुद्र तट पर राम द्वारा सेतुबंध रामेश्वर का स्थापना हुआ।।
कल इस कथा का आखिरी दिन है कल कथा सुबह 9:30 बजे शुरू होगी।।