Homeगुजरातयज्ञ धार्मिक क्रियाकांड नहीं लेकिन सनातनियों की जीवन शैली है: भाइ श्री

यज्ञ धार्मिक क्रियाकांड नहीं लेकिन सनातनियों की जीवन शैली है: भाइ श्री

यह पृथ्वी माता का चुनरी मनोरथ है।।

एक हरी सारी पृथ्वी माता को हम पहनाने जा रहे हैं:भाइ श्री रमेश भाइ ओझा।।

कल इस पंडाल में लगेगा मीनी कुंभ मेला।।

वृक्ष जानकी के भाई है,जब भी वृक्ष को बोयें सीता का स्मरण करके बोना।।

हम सच्चे होने के बावजूद हंसते-हंसते सहन कर लेते हैं उसे तप कहते हैं।।

सच्चा होने के बावजूद हम मुंह बिगाड़ते नहीं।। हमारी भूल का हम प्रायश्चित कर लेते उसे भी तप कहते हैं।।

परमात्मा को प्राप्त करने की भीतरी तीव्रता को भी तप कहते हैं।।

सत्य,प्रेम और करुणा को पाने के लिए साधक के मन में उठी हुई तत्परता को भी तप कहते हैं।।

रामकोट बने राजकोट के रेसकोर्षग्राउन्ड से बह रही रामकथा के छठ्ठे दिन के आरंभ पर पोरबंदर सांदिपनीगुरुकूल के स्थापक एवं देवका विद्यापीठ के स्थापक और युवा वय से ही समर्थ भागवताचार्यभाइ श्री रमेशभाइ ओझा भी व्यास पीठ वंदना एवं अपने आशीर्वादक भाव मौन होते हुए भी आशीर्वचन और सांदिपनी संस्था की और से ५ लाख रुपिये की राशि सद्भावना संस्था को अर्पित की।।

अपने भाव रखते हुए बताया कि:भगवत गीता में एक प्रसिद्ध श्लोक महत्व का है।सृष्टि का आरंभ हुआ तब से यज्ञ सहित सृष्टि ब्रह्मा ने उत्पन्न की। प्रजापति ब्रह्मा ने बोद्ध किया प्रजा को कहा यह यज्ञ के द्वारा आप देवताओं का पूजन करें।रुण स्वीकार करो, सृष्टि के प्रत्येक तत्व, माता-पिता और समाज के प्रति अपनी कृतज्ञता भाव व्यक्त करो। यह यज्ञ आपकी हर इच्छा को पूर्ण करेगा।।

सनातन हिंदू संस्कृति में यज्ञ धार्मिक क्रियाकांड नहीं लेकिन सनातनियों की जीवन शैली है।। हमारा प्रत्येक कर्म यज्ञ होना चाहिए। यज्ञ के बिना कर्म बंधन का कारण बनता है।कर्म को हमें यज्ञ की ऊंचाई पर पहुंचाना है।।सद्भावना ने नए प्रकार का यज्ञ का आरंभ किया है। जैसे वैष्णव में चुनरी महोत्सव और चुनरी मनोरथ का महत्व है वैसे यह पृथ्वी माता का चुनरी मनोरथ है।। एक हरी सारी पृथ्वी माता को हम पहनानेजा रहे हैं।। कोरोना ने हमें दिखा दिया ऑक्सीजन के बगैर की स्थिति क्या होती है। वृक्षों को खींच लेना पृथ्वी माता के फेफड़े को नुकसान पहुंचाना है। आयुर्वेद हमारा उपवेद है और वैद वृक्ष में जड़ी बूटी लेने के लिए जाने से पहले निमंत्रण देते हैं कि हम इस दिन पर आपके वहां आएंगे।। यह संवेदनशीलता तो देखो औषधि के स्वामी चंद्रमा है निश्चित दिन पर वनस्पति का पूजन और बाद में काटने से पहले क्षमा मांगते हैं यह संवेदनशीलता की चरम सीमा है।। हमारे वृध्ध वटवृक्ष जैसे है उनकी छाया में संतान को शीतलता मिलती है।।संतान बगैर के वृध्धों के लिए भाव वानप्रस्थ आश्रम बनने के लिए शुरुआत है।।शायद भारत में यह सबसे बड़ा व्यवस्था होने जा रहा है ब्रह्मचारियों के लिए गुरुकुल है। गृहस्थ अपने कर्म योग से रोटी पा लेते हैं। संन्यासियों को भी मान के साथ प्रणाम करके हम भिक्षा देते हैं।। लेकिन बीच में वानप्रस्थ आश्रम के लिए कुछ नहीं। वह मांग भी नहीं सकते हैं।। इसलिए उनके सम्मान के लिए,वो जीने के अधिकारी है।।सरकार और समाज को सुनिश्चित व्यवस्था करनी चाहिए, संतानों को भी कुछ करना चाहिए।। हमारे वडील के लिए यह सब कुछ हो रहा है।। सांदीपनी गुरुकुल की ओर से ५ लाख की राशि अर्पण करके भाई श्री ने अपना भाव रखा।।

यहां भावनगर से बुधाभाई १ करोड़ ११ लाख की राशि अर्पण की।।

कल के दिन वृद्ध आश्रम के संचालक और स्वामी परमात्मानंद जी का जन्मदिन है।। कल इस पंडाल में छोटा सा कुंभ मेला लगने वाला है।।पुराने अखाड़ा के पीठाधीशअवधेशानंद गिरी जिन्होंने १४ लाख साधुओं को दीक्षा दी है।। नाथ संप्रदाय के बड़े गुरु गोरखनाथ जो गोरखपुर में भी बसे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी जिनके अध्यक्ष है वह महंत भी कल आ रहे हैं।।और गीता पर जीन का बहुत प्रभुत्व है और हरियाणा में ८ साल से गीता जयंती का उत्सव मना रही और मथुरा से कुरुक्षेत्र गीता जयंती एक्सप्रेस शुरू करने वाले और महाभारत टूरिज्म जहां महाभारत का युद्ध हुआ और कौन कहां से लड़ रहे थे वह कुरुक्षेत्र मैदान की जिम्मेदारी लेकर बैठे स्वामी ज्ञानानंद जी, गीता मनीषी भी आ रहे हैं।।वैसे ही गोवा से पद्मश्री भावेशानंद जी महाराज और वैष्णव संप्रदाय के आठ पीठ है। द्वितीय पीठाधीशद्वारकेश लाल जी और षष्ठमपीठाधीशद्वारकेश लाल जी भी कल यहां आ रहे हैं वैसे ही कृष्ण प्रणामी मंदिर के कृष्णमणि जी और अनेक नामी अनामीसंतो महंतों का छोटा सा कुंभ मेला कल यहां लगने वाला है।।

बापू ने कहा कि हमने बताया कि चंदन का वृक्ष गणेश का है। लेकिन चंदन के वृक्ष को चोरी करके बहाने काट दिए जाते हैं। इसलिए चंदन के बजाए जो भी पहले वृक्ष बोयें वह वही श्री गणेश।। समज कर उसे गणपति का वृक्ष समझ लेना भी अच्छा होगा।।

नदी के संगम, पर्वत की गुफा में मुख्य स्थान में द्विजत्व का जन्म होता है ऐसा शास्त्र कहता है।। विप्रत्व ब्राह्मणत्व प्रकट होता है।। लेकिन बोध जहां प्रगत्तता है वह किसी वृक्ष के नीचे प्रगट होता है।। जिन्हें बोध हुआ है वृक्ष मंदिर के नीचे ही हुआ है।। यह वृक्ष मंदिर शब्द पांडुरंग दादा ने हमें दिया है।। जिन वृक्ष के नीचे बोद्ध प्राप्त हुआ ढाई हजार साल पहले तथागत बुद्ध ने बोधि वृक्ष कहते हैं।।शांकरी परंपरा में जगतगुरु आदि शंकराचार्य दक्षिणा मूर्ति मौन सत्संग कर रहे हैं वह भी बोधि वृक्ष के नीचे है हमारे वेद में आरण्य ग्रंथ के अलावा एक अरण्य सूक्त है।। जहां वर्णन मिलता है जंगल में शिकार होता है लेकिन वन और तपोवन में शरणागति और साधना होती है।। सूक्त में लिखा है वनों के बीच एक देवी घूमती है उनका नाम वन देवी है।। वन देवी को ऋषि कहते हैं आप नगर में क्यों नहीं आती तो वन देवी बहुत अच्छा जवाब भी देती है।।वृक्ष और वृद्धो का महिमा हमारे ग्रंथो ने बहुत किया है।। राम वनवास के दौरान जानकी जी को घर पर रहने के लिए राम समझते हैं और कहते हैं वन में क्या-क्या विपत्ति है। राक्षस भी रहते हैं।। तब जानकी जी ने कहा कि वन में लाभ भी होता है।।वन देवी हमारी सास की तरफ और वन देवता मेरे ससुर की तरह मेरी रक्षा करेगा।। यह केवल सीता जी ही नहीं पृथ्वी और पृथ्वी की बेटी बोली है।।वृक्ष जानकी के भाई है जब भी वृक्ष को वह सीता का स्मरण करके बोलना और एक नाडासूत्र बांध कर भावना करना की जानकी  अपने भाई को रक्षाबंधन कर रही है।। वृद्धो के साथ हमारा नाता टूटा है। दो दोस्त अलग पडतेहैं।बाप बेटा, भाई-भाई अलग पडते हैं तब छूटाछेडा नहीं बोलते।। लेकिन पति-पत्नी के लिए यह शब्द है।। हमें अलग होने से पहले जागो।। सभ्यता को संस्कृति के वृक्ष को वेल की तरह चीपक कर रहना चाहिए।। ऋषि तपस्वी साधक वानप्रस्थ सन्यासी कहते हैं वृक्ष और वेल के मंदिर के घर बने हैं।।वहां सब तप करते हैं। आज बापू ने कहा तप क्या होता है ।आज के देशकाल और पत्र के अनुसार शास्त्र में प्रकट और अप्रगट सत्य है।। प्रगट तो हम देख सकते हैं अप्रकट गुरु मुख होता है।।तप का मतलब है हम सच्चे होने के बावजूद हंसते-हंसते सहन कर लेते हैं उसे तप कहते हैं।। सच्चा होने के बावजूद हम मुंह बिगाड़ते नहीं।। हमारी भूल का हम प्रायश्चित कर लेते उसे भी तप कहते हैं।। परमात्मा को प्राप्त करने की भीतरी तीव्रता को भी तप कहते हैं।। सत्य प्रेम और करुणा को पाने के लिए साधक के मन में उठी हुई तत्परता को भी तप कहते हैं।। हमें ऐसे तप होने चाहिए।ये कथा किसी संस्था के लाभार्थ नहीं लेकिन हमारे शुभार्थ के लिए हुई ऐसा अर्थ बापू ने बताया।। घर में रहकर स्वाध्याय ग्रंथ का अध्ययन करना भी तप है।। प्रवचन भी तप है और बोलना भी तप है।।और ऐसे तप में ही हमें पूरे अपनी जात को खतम कर देना है।।

बापू ने कहा कि यहां अभी कहा गया ५० करोड़ की राशि आ गई इनमें तीन करोड़ ६० लख रुपए मेरे फ्लावर्स के भी है।।

व्यसन को छोड़ देना, ना खाने योग्य न खाना वह भी तप है।। सत्य आदि ११ महाव्रत का प्रमाणिकता से पालन करना भी तप है।। गांधी जी ने स्वाद त्याग शब्द पसंद किया।।बापू ने कहा कि स्वाद त्याग मेरे लिए बहुत दूर की बात है।। इसलिए थोड़ा उसमे अलग करके स्वार्थ त्याग शब्द मेरे लिए में रखना चाहता हूं।।

किसी गुरु के पास प्राणायाम आदि विद्या सीख कर पालन करना भी तप है।। और बहुत कुछ इकट्ठा किया फिर सबको धीरे-धीरे कम करते जाना उसे प्रत्याहार कहते वह भी तप कहता है।। चरक संहिता में बताया है अन्न का दान करना भी तप है।।

व्यास पीठें सब को जागृत करती है।।सभी ने अलग-अलग रीत से ईश्वर को पाया।। जलारामबापा ने रोटी से ईश्वर को पाया है।।एकांत में बैठकर हरि स्मरण करना भी तप है।। उपनिषद में वृक्ष की डाली पर दो पक्षी बैठकर वृक्ष का महिमा गान करते हैं।। संसार वृक्ष है और चमडी चार अलग-अलग स्तर की है।। ग्रंथ जब समझ में ना आए तब गुरु मुख हमें समझाता है।। वैदिक मंत्र, वैदिक सूत्र, वैदिक कर्म और वैदिक धर्म के चार स्तर हे। यह वृक्ष को छे शाखाएं हैं।।वह छह दर्शन,छह आगमों है ।।२५ तत्व शाखाएं हैं।। पत्ते और फूल अनेक है।। भारतीय संस्कृति का यह वटवृक्ष है।। दो फल है एक मीठा है और एक कड़वा है।। एक वेल वृक्ष को स्पर्श के जुड़ी हुई है उसे हम माया कहते हैं।। माया जब परमात्मा को आसपास रहती है तो अच्छी लगती है लेकिन हमें यदि छुए तो हमें सुखा देती है।।

वृक्ष और बुद्धत्व और वृद्धतत्व के अच्छे गुण बापू ने कहे:औदार्य,सौंदर्य, गांभीर्य,धैर्य,शौर्य और माधुर्य यह दोनों में दिखते हैं।।

राम जन्म के कारण में शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गंध दिखाई देती है।।शब्द राम को भी प्रकट करते हैं और रावण को भी जन्म देता है।। जय विजय का श्राप वह शब्द का प्रताप है। वृंदा को स्पर्श करने के लिए और मनु शतरूपा का रस है।।नारद विश्व मोहिनी के रूप में मोहित हुए हैं। और भोजन की गंध आमिष भोजन की दुर्गंध यह गंध है।। ऐसे पांच कारण राम जन्म के बता कर फिर राजकोट की भूमि से समग्र त्रिभुवन को राम जन्म की बधाई देते हुए बापू ने आज की कथा को विराम दिया।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Must Read