Homeगुजरातचित्त में आसक्ति भी है विरक्ति भी है।

चित्त में आसक्ति भी है विरक्ति भी है।

एकांत को दुरुपयोग हो जाए तो आसक्ति बढ़ जाती है।।

एकांत आशीर्वादक भी है और खतरनाक भी है।।

“एक बार पूरे विश्व को मानस की आलोचना के बदले मानस की आरती उतारती पड़ेगी”

हर अभिलाष खूबसूरत बंधन है।।

मॉं की कूख भी गुफा है और अंत समय समाधि का सुख भी गुफा है।।

औरंगाबाद महाराष्ट्र में बहती रामकथा धारा आज छठ्ठे दिन में प्रवेश कर रही है।आरंभ में सभी प्रगट अप्रगट चेतनाओं को वंदन करते हुए बापु ने बताया कि चित् की गुफा जहां परम विष्णु लक्ष्मण के संग चातुर्मास कर रहे हैं।। चित्त का एकाग्र होना पतंजलि ने योग कहा है।। चित्र वृत्ति का निरोध योग है।।यह गुफा में वियोग भी है। प्रियहीन शब्द यहां निकलता है। प्रेम की गुफा-निकुंज में राधा कृष्ण का संयोग है।तब वहां वियोग नहीं है। लेकिन जब कृष्ण चले जाते हैं तब निकुंजविहारिणी राधा जी वियोग में रहा रहती है। फिर वृंदावन,यमुना पेड़ पौधे सब वियोग में रहते हैं।।साधना में चित्त की बड़ी महिमा है,मन की प्रधानता नहीं है।।आसक्ति भी है विरक्ति भी है।एकांत को दुरुपयोग हो जाए तो आसक्ति बढ़ जाती है। एकांत आशीर्वादक भी है और खतरनाक भी है।। सभी गुफा को भौतिक रूप से नहीं वैचारिक रूप से भी देखना।।भजानिकों ने चित्त की बात कही है वहां मन बुद्धि की बात नहीं। हमारे गंगा सती भी चित् के बारे में भजन लीखे हैं।।

बापू ने कहा एक बार पूरे विश्व को मानस की आलोचना के बदले मानस की आरती उतारती पड़ेगी।।मुझे यहां से ऐसा दिखता है।

बापू ने कहा जीवन यात्रा रेल यात्रा जैसी है।बहुत स्टेशन आएंगे। कभी सुख का,कभी दुख का। लेकिन सबको देख लो, वहां रुकना नहीं क्योंकि बहुत आगे जाना है।। हर अभिलाष खूबसूरत बंधन है। यह बंधन अभिलाष शून्य हो जाए तो जहां बैठे वही हमारा लक्ष्य है।। भगवान शिव और अपने बुद्ध पुरुष की निंदा करने वाला मेंढक बनता है।

हर गुरु निंदक दादुर होए…

शरणानंद जी महाराज ने कहा कि भक्तों की दृष्टि से किसी का अन्याय सहन कर लेना शायद उचित है लेकिन न्याय दृष्टि से अन्याय सहन करना नींदनीय है।। आए बापू ने कहा कि शरणानंद जी महाराज को प्रणाम करते हुए मैं बताऊं कि मैं तो अन्याय को भी सहन करता हूं। वह भी मेरे लिए तप है।। मां की कूख भी गुफा है और अंत समय समाधि का सुख भी गुफा है।। उत्तम पुरुष का परिवर्तन ज्ञान से होता है, मध्यम का परिवर्तन लालच से होता है और निकृष्ट का परिवर्तन भय से होता है यह शरणानंद जी महाराज ने कहा है।।

बापू ने कहा कि कभी सोचा है काम का निवास कहां है? घराना खोजे बिन हम काम पर प्रहार कर रहे हैं!लोभ कहां रहता है? क्रोध कहां रहता है? गोस्वामी जी ने काम का निवास स्थान ह्रदय बताया है। मन से तो केवल वह प्रगट होता है।।हम मारने दूसरी जगह जाते हैं।।जहां काम बैठा है वहीं हृदय में राम भी बैठा है।। यदि राम दिख गए तो काम चल जाएगा। आयुर्वेद कहता है सबसे ज्यादा कफ शरीर में कंठ में रहता है। वह लोभ है और क्रोध बुद्धि में निवास करता है। चित् में विरक्ति भी है आसक्ति भी है क्योंकि वहां एकांत है।।

अवंतिका नगरी का राजा भरथरी जो मछंदर नाथ की परंपरा में आए। गुफा में उसने दो ग्रंथ लिखे श्रृंगार शतक और वैराग्य शतक लिखा।।

बापू ने अवंतिका नगरी की रसीली कहानी भी सुनाई जहां शिप्रा के तट पर एक पंडित ज्ञान देने जाता है और गधे से बात करता है।।

चित् की गुफा में व्यथा भी है कथा भी है।।चित् बहुत संग्रह करता है। चित् के द्वैत से तब ही मुक्ति होती है जब चित ही खत्म हो जाए। शंकराचार्य जी कहते हैं विषय का विषय का विलास ना रहे तब चित् से मुक्ति होगी।।

कथा प्रवाह में राम जन्म के बाद अयोध्या में एक महीने का दिन हुआ। फिर चारों भाइयों के नामकरण संस्करण, यज्ञोपवीत संस्करण और विद्या संस्कार हुआ।। और विश्वामित्र राम और लखन को लेने आए और रास्ते में ताडका वध हुआ और राम लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का जनकपुरी में प्रवेश हुआ।।

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