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विक्रम की नइ साल की पहली और क्रम में ९४६वीं रामकथा का देवभूमि-तपभूमि ञुषिकेश के पावनी मॉं गंगा के तट से आरंभ हुआ।।

“विद्वत्ता,विनम्रता और वितरागता से भरी बापु की फकीरी हमें अमीर करने ८० साल की आयु में भी निरंतर विचरण कर रही है”:स्वामी चिदानंद सरस्वती जी।।
निकृष्ट को छोड़ना मात्र वैराग्य नहीं श्रेष्ठ को पकड़ना भी वैराग्य है।।
लाभ को ग्रहण करना वैराग्य नहीं।।
भ्रम के विचार से जगत का निर्वाण ब्रह्म विचार ही करेगा।।
दुनिया नारों से संदेश देती है भारतीय ऋषि विचारों से संदेश देते हैं।।

एक ही परिवार की सप्त बहन-सेवन सिस्टर्स के मनोरथ से परम पावनी मॉं गंगा के तट पर गंगा रिसोर्ट के पास मुनि की रेत से कथा के आरंभ पर यहां के विधायक एवं उत्तराखंड के वित्तमंत्री,अन्य मंत्रालयो के सदस्य और प्रेमचंद अगरवाल जी की विशेष उपस्थिति में सब ने अपने मंगल भाव रखे।।
स्वामी जी ने कहा की छठ पूजा और लाभ पंचमी के पावन दिनों में बापु के चरणों में बैठना ही दिवाली और परम सौभाग्य है।।
ब्रह्म जो निगम नेति कहि गावा।
उभय बेष धरि की सोइ आवा।।
इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा।
बरबस ब्रह्म सुखहि मन त्यागा।।
धरम राजनय ब्रह्म बिचारु।
इहां जथामति ब्रह्म बिचारु।।
इन्ही बीज पंक्तियों से कथा आरंभ करते हुए हिमालय की ऋषि मुनि देवताओं की भूमि निरंतर अपनी परम पावन धरा लेकर बहती मां गंगा और इस भूमि से जुड़ी प्रगट अप्रकट चेतनाओं को प्रणाम करते हुए बापू ने कहा:पूजनीय स्वामी जी में फाट-फाट सद्भाव भरा है।।बंदउ तब पद बारहि बारा… राजपीठ के सदस्यों ने प्रशासन ने व्यास पीठ के प्रति प्रेमभाव व्यक्त किया और यह सात बेटियां जिन्होंने अपने पैसों से कथा मनोरथ किया।। बेटियों को बाप पर कितना अधिकार होता है वह सिद्ध किया।।यह कथा चित्रकूट में होने वाली थी भाव प्रवाह में खींचकर ऋषिकेश ले आई,धन को धन्य किया।।बेटियों को बाप प्रणाम नहीं करने देते तुम्हारा बाप तुम्हें नमन कर रहा है!
गंगा शिव की जटा से निकली। सात ऋषियों ने तप किया। सात धाराओं में बिखरी। यह सात बहनों ने सात सोपनो वाली गंगा को यहां खींचा है।। साथ ही बापू ने पिंकी और उनकी टीम रुपेश और सबके तप के प्रति प्रसन्नता व्यक्त की और दीपावली से लेकर छठ पूजा तक त्योहारों की बधाइयां दी।।
बापू ने कहा आखिरी कथा मेरे दादा जो मेरे लिए विश्वास स्वरूप है उनके स्मरण में गाई थी।। यहां ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर अनंत श्री विभूषित विष्णु देवानंद गिरि जी कि स्मृति में कथा हो रही है।। दो दादा के बीच में बेटा बैठा है! और शंकर दादा हनुमान दादा भी है।।दादाओ की गोद में गाने का अवसर है।।
बापू ने कहा हमारी दो धारा विश्वास की और विचार की दोनों के बीच में विराग की धारा बह रही है।। हम त्यागी नहीं है गृहस्थ है लेकिन उस साधुकुल से आ रहे हैं जहां हमें बैरागी साधु कहते हैं।।समर्थ भागवतकार नरेंद्र दादा ने कहा वैराग्य की व्याख्या बताइ, निकृष्ट को छोड़ना मात्र वैराग्य नहीं श्रेष्ठ को पकड़ना भी वैराग्य है।।शुभ को पकड़ना, श्रेष्ठ राम, रामकथा,रामनाम है।। मैंने त्याग नहीं किया लेकिन कई जन्मों से मैं भूल गया था वह फिर से पकड़ रहा हूं।। लाभ को ग्रहण करना वैराग्य नहीं।। बापू ने कहा कि दादा के ब्रह्म विचार पर संवाद करेंगे। संशय,संदेह,मोह और भ्रम यह चारों को मिटाने के लिए ब्रह्म विचार जरूरी।।भ्रम के विचार से जगत का निर्वाण ब्रह्म विचार ही करेगा।।
यहां तीन पंक्ति उठाई है। केंद्र में महाराजा जनक के ब्रह्म विचार पड़े हैं। दो पंक्ति बालकांड से तीसरी अयोध्या कांड के चित्रकूट से उठाई है। रामचरितमानस विचारवंत ग्रंथ है। ब्रह्मविचार, वेदांत विचार है।।बालकांड विवेक विचार,अयोध्या कांड विषाद विचार है।अरण्य कांड में विराग विचार और किष्किंधा कांड में विरोध विचार है। सुंदरकांड वियोग विचार है। लंका कांड विलास विचार और उत्तराखंड विश्राम विचार है। यह कांड हमारे जीवन के खंड है जो बारी-बारी से आते हैं।।
दुनिया नारों से संदेश देती है भारतीय ऋषि विचारों से संदेश देते हैं।।
कथा प्रवाह में सात सोपनो की बात। सात मंत्र और वंदना प्रकरण में पंचदेवों की वंदना के बाद गुरु वंदना और हनुमत वंदना का गान किया गया।।

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