राम सुर्यों के भी सूर्य,परम सूर्य,परम प्रकाश है।।
जन्म जीव का,प्रागट्य परम शक्ति का और अवतार परम इश्वर का होता है।।
राम अग्नि के अग्नि है,फिर भी दाहक नहीं शीतल है।
राम प्रभु का भी प्रभु है,लक्ष्मी का लक्ष्मी,कीर्ति वालों की कीर्ति और यशस्वियों का यश है।।
क्षमावानों की क्षमा और प्रभुता पाने वालों की प्रभुता राम है।।
देवताओं का दैवत और प्राणी मात्र का प्राण तत्व राम है।।
आनंद को आनंद देनेवाला-आनंददाता राम है।।
विषम परिस्थिति में हमारे आनंद की कसौटी होती है।।
मंजूरी मिल जाये तब आदि कैलाश और बंदरपूंछ में कथागान करना है।।
चार धामोंमेविशिष्ठ बदरी विशाल के कपाट खुलने के विशेष दिन पर,आज रामकथा के दूसरे दिन चमौली के नंद प्रयाग पर बह रही रामकथा धारा में उतराखंड के लोकप्रिय जनप्रिय मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी की विशेष उपस्थिति रही।।उन्होने अपने शब्द भाव रखते हुए बताया की आज मौसम खराब होना शुरु हुआ लेकिन बदरी विशाल के कपाट-द्वार खुलने का महत्व का अवसर,ये द्वार खुलना केवल संयोग नहि,इश्वरीय संकेत है।।इस आयोजन को हमारी आत्मा को शुध्ध करनेवाला और भगवान श्री राम के आदर्शों को आत्मसात करने का अवसर प्रदान करनेवाला बताया।।
नंदप्रयाग आनंद प्रयाग में परिवर्तित हो गया है।
कथा प्रारंभ करते हुए बापू ने कहा कि पुष्कर सिंह धामी जी ने पूछा कि आदि कैलाश में कथा क्यों नहीं?वैसे साधु मांगता नहीं। लेकिन विनय करता हूं मंजूरी दे दो! वहां भी राम कथा का गान करेंगे और उसी वक्त पूरा पंडाल तालियों की गूंज से गूंज उठा।।
और एक विनय करते हुए बापू ने कहा कि सरकार के एक भी नियम न छूटे,सब कुछ ठीक-ठाक रहते हुए हनुमान पूंछ-बंदर पूछ वहां भी रामकथा करने का मनोरथ है।। यह भी बताया कि मीडिया और अखबार के माध्यम से देखता हूं कि उत्तराखंड में बहुत विकास कार्य हुए हैं।। राजा ईश्वर की विभूति है और यशस्वी प्रधानमंत्री जो निर्णय करते हैं उनके शीघ्र पालन करने वाले आप है।। तो बापू ने साधुवाद देते हुए कहा कि उत्तराखंड की जनता और सभी संपन्न,प्रसन्न और प्रपन्न रहे ऐसी हनुमान जी के चरणों में प्रार्थना।।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में राम के वनवास पर मां कौशल्या बहुत व्यथित होकर विलाप करती है।। जबकि रामचरितमानस में कौशल्या कुछ व्यथित जरूर हुई है।। लेकिन मां कौशल्या पूर्व जीवन में शतरूपा के रूप में थी और गोमती तट पर कड़ी तपस्या के बाद वरदान मांगा था कि आपके समान पुत्र की प्राप्ति हो और परमात्मा ने कहा कि मैं ही आपके घर में स्वयं पुत्र बनकर आऊंगा।।
यहां राम के विरह में रो रही है तब सुमित्रा राम के बारे में जो बताती है वह मंत्र बापू ने कहा।। सुमित्रा कहती है कि आपके उदर से राम आए हैं लेकिन हमारे उर में भी राम है।। राम वन में रहे या भवन में रहे राम को कोई फर्क नहीं पड़ता।। स्थिति राम को हिला नहीं पाएगी।। पूरा एक अध्याय सुमित्रा के उपदेश से भरा है। राम कौन है? वहां से कथा का आज आरंभ हुआ।।
सूर्यस्यापीभवेत सूर्य अग्नैर्अग्निप्रभो हो प्रभु:…
ऐसे दो मंत्रों में जो बात की उसे रामचरिमानस के साथ बापू ने जोड़ा।। सुमित्रा कहती है देवी! राम सूर्य नहीं है। सूर्यवंशी जरूर है लेकिन सुर्यों के भी सूर्य परम सूर्य परम प्रकाश राम है।। तीन शब्द- अवतार,प्रागट्य और जन्म आध्यात्मिक बड़े अर्थ है। लेकिन तीनों राम से जुड़े हैं।।जन्म जीव का होता है और प्रगट हो होते हैं जो किसी एक कार्य के लिए आते हैं।। परमात्मा भी होते हैं जैसे वराह का प्रागट्य हुआ है और अवतार में पूरा जीवन ऐसा दिखाना पड़ता है कि युगों तक वो याद रहता है।। इसलिए शंकराचार्य आदि आचार्य अवतार है। ठाकुर राम कृष्ण रमन आदि क्योंकि सब आए पूरे जीवन में संघर्ष सहन किया।।
राम के लिए तीनों शब्द है विवाह के लिए जाते हैं वहां जन्म शब्द लिखा है। फिर भए प्रगट कृपाला और विप्र धेनु सुर संत हित लिन्ह मनुज अवतार… तो राम अग्नि के अग्नि है। फिर भी दाहक नहीं शीतल है। प्रभु का भी प्रभु है। लक्ष्मी का लक्ष्मी राम है।। कीर्ति वालों की कीर्ति और यशस्वियों का यश है।। क्षमावानों की क्षमा और प्रभुता पाने वालों की प्रभुता राम है।। देवताओं का दैवत राम है।। प्राणी मात्र का प्राण तत्व है।। ऐसे राम के लिए वन हो या भवन कोई फर्क नहीं पड़ता।।
लेकिन तुलसी ने और एक बात जोड़ी है: राम आनंद का भी आनंद है।। आनंद को आनंद देने वाला है। रामचरितमानस में आनंद शब्द 31 बार आया हैं।। आनंद ने तथागत बुद्ध से पूछा कि आनंद की व्याख्या क्या है? हमारे यहां तथागत शरणागत और अभ्यागत तीन शब्द बहुत अच्छे मिलते हैं।। किसी भी परिस्थिति में चित् की भूमिका पलटे नहीं,वह आनंद की व्याख्या है।।विषम परिस्थिति में हमारे आनंद की कसौटी होती है।।
कथा प्रवाह में जनक सुता जग जननि जानकी और राम की वंदना के बाद जानकी जी के नौ स्थान जो इंसान की बुद्धि को भी निर्मल करते हैं वह बापू ने बताएं।। जानकी के नव स्थान में पृथ्वी,जनकपुर, कनक भवन,तीर्थराज प्रयाग,चित्रकूट,पंचवटी,लंका वाल्मीकि आश्रम और फिर पृथ्वी में समा गई।।
और बहुत विस्तार से राम नाम महिमा नाम वंदना का प्रकरण का गान किया।।
पशुओं के अंग उपांग से बने वाजिंत्र पर हरिनाम गाते बजाते है तब पशुओं को मुक्ति मिलती है तो हम तो मनुष्य है और खुद अपने अंग और जिह्वा से हरिनामसंकिर्तन करेंगे तो क्या नहि होगा!
एकबार के कुंभ में भरद्वाज और याग्यवल्क्य मिलते है और वहां वो राम जो वेद विदित है,जिनके नाम का इतना बडा प्रभाव है।खुद अविनाशी शिव जो रटते है वो राम के बारे में पूछा गयाा
कथा की भूमिका,चार अलग अलग वृक्ष की छांव ग्यान,ध्यान,कर्म,भक्ति की भूमिका दिखाइ और आज वहां पर कथा को विराम दिया।।