*यहां पैसा नहीं करुणा बह रही है।।*
*साध्य को पकड़ो तो साधन पकड़ में आएगा।।*
*कथा को भी साधन मत बनाओ कथा मूलतःसाध्य है।।*
*परमात्मा की व्यवस्था में सहयोग करना ही ईश्वर की पूजा है:आचार्य देवव्रत जी।।*
*साधु का बेडला सवाया! एक ही दिन में बापु फ्लावर्स ने पार कर दि एक करोड की राशि!*
राजकोट गुजरात से सद्भावना वृद्धाश्रम और वृक्षों के लिए त्रिभुवानिय रामकथा चल रही है।। दूसरे दिन पर बहुत से मेहमान अतिथि विशेष और गुजरात राज्य के महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी भी कथा में शरीक हुए।।आचार्य ने अपना भाव रखते हुए बताया कि:हमारे देश का परम सौभाग्य रहा आदिकाल से ऋषि,मुनि,साधु मार्गदर्शन सदैव मिलता रहा।।भारत अध्यात्म विश्व में सबसे आगे गुरु के रूप में था। बीच में एक काल कमजोरी में विदेशियों ने सांस्कृतिक विरासत का विनाश किया और हमें गुलाम भी बनाया।। फिर दुनिया भर के झंझावातों के बावजूद आज पुनः वही विरासत तेजी से आगे बढ़ रही है।।भारत का और गुजरात का सौभाग्य है गुजरात की धरती ने समय-समय पर गांधी जी,सरदार पटेल, साधु संत और यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे लोगों को पत्र प्रदर्शन के रूप में हमें दिए हैं।।
मोरारि बापू ने पूरा जीवन भगवान राम का पूरे विश्व को मानवता का परिचय करवाया। हर जीवन में कोई ऐसा पक्ष न है जहां भगवान राम का आदर्श प्रभावित न करता हो।। भगवान राम का जीवन प्रेरणा के रूप में खड़ा हो जाता है।। एक राजा अपने प्रजा के प्रति कितना उत्तरदायित्व निभाता हो राम से सीखें।। एक बेटा,एक पिता,एक पति,एक भाई की जिम्मेदारी मर्यादा को बचाकर राम कैसे निभाते हैं वह दुनिया में और कहीं से नहीं मिल सकता।।
बापू ने भारत की संस्कृति और भगवान राम का परिचय पूरी मानवता को करवाया, सबको प्रेरणा दी है।।
आचार्य ने बताया कि मैं गांव में किसानों को मिलने जाता हूं तो यह सद्भावना के वृक्ष की कतारें देखता हूं और मिलने का जी करता है।। सबसे बड़ी चुनौती ग्लोबल वार्मिंग है।दुनिया का कोई डॉक्टर या वैज्ञानिक इनका इलाज नहीं कर सकते। हम सब ने भगवान की व्यवस्था तोड़ने के लिए पर्यावरण को बिगड़ने का काम किया है।। यूरोप में आज गर्मी, अतिवृष्टि,कहीं अनावृष्टि,कहीं भूकंप,जलवायु प्रदूषण के कारण आ रहे हैं।।लेकिन सद्भावना के लोगों ने करोड़ों वृक्षों का संकल्प लिया और सिर्फ पेड़ लगाया इतना ही नहीं सबको पालन पोश के बड़े करने की जिम्मेदारी भी उठाई इसका हमें पूरा आनंद है।। पैर को २ साल पालने के बाद फिर वह जिंदगी भर हमें पालता है।।
परमात्मा की व्यवस्था में सहयोग करना ही ईश्वर की पूजा है।। ऐसा आचार्य ने कहा। हमें पूरा सहयोग तन मन और धन से करना चाहिए। देवता वह है जो देता है जीवन जीने का तरीका देता है।। इसलिए मातृ देव, पितृ देव,अतिथि,आचार्य,सूर्य,पृथ्वी देव है रामकथा में आज दान का प्रवाह बहुत जोरों से बहा १० करोड़ से भी ज्यादा दान यह वृद्धाश्रम को मिला और किसी ने ११ लाख का एक कमरा ऐसे ११ कमरे बनाने को दान किय।।१ लाख वृक्ष ४ साल तक यदि पोषण करें तो १७ करोड़ का खर्चा होता है किसी ने वह भी दिया है।। सब ने अपनी तरफ से कुछ न कुछ दान किया और सबका सम्मान व्यासपीठ और आचार्य देवव्रत के हस्तों से हुआ। बापू ने सबका अभिवादन करते प्रसन्नता की और आचार्य देवव्रत के कार्य में बल मिले वह हनुमान जी के चरणों में प्रार्थना की।।
बापू ने बताया कि मैं कल मेरी भाषा में विनय किया कि व्यासपीठ तुलसी पत्र रखेगा अभी २४ घंटे भी नहीं हुए और एक करोड़ से ज्यादा रुपए आ गए हैं! जो हम साधु स्वामी जी के हस्त देंगे।। और हमारे परिवार संगीत मंडल और सब की ओर से पांच लाख की राशि कल हम अर्पण भी करेंगे।।
बापू ने एक बताया मेरे फ्लावर्स को नाम की जरूरत नहीं।नाम हरि का है।। फिर भी नाम और नोंध भी लेनी चाहिए।।धर्म के चार चरण:सत्य, तप, पवित्रता और दान है।।कलयुग में सिर्फ दान टिका है।। सत्य को शपथ की जरूरत नहीं। प्रेम को अर्थ कथन की जरूरत नहीं।। क्योंकि प्रेम अकथनीय है और करुणा को गरथ-पैसों की जरूरत नहीं।। यहां पैसा नहीं करुणा बह रही है।। बापू ने बताया कि साध्य को पकड़ो तो साधन पकड़ में आएगा।। समुद्र को नदी की जरूरत नहीं लेकिन नदियां अपने आप समुद्र को मिलने आती है।। कथा को भी साधन मत बनाओ कथा मूलतः साध्य है।। यह भी कहा कि जैसे एक करोड़ का महत्व है वैसे मेरे कोई श्रोता के ₹१ का भी इतना ही महत्व है।।
रामचरितमानस के सातों कांड में सात विद्या है।।एक शस्त्र विद्या विश्वामित्र आचार्य है। दूसरी शास्त्र विद्या वशिष्ठ ने राम को दी। तीसरी वेद विद्या चारों वेद बंदीजनों के रूप में राम के दरबार में गायन करते हैं।चौथी अध्यात्म विद्या है। पांचवी योगविद्या है। छठ्ठी लोक विधा है।।लोक विधा के अंदर वृक्ष, जल,भूमि,वायु,आकाश,अग्नि जैसे प्रकरण हम देख सकते हैं।। लक्ष्मी जल विद्या का प्रतीक है। समुद्र की संतान है।। मां जानकी भूमि विद्या है। पृथ्वी में से निकली है।। शिव पार्वती के लग्न ब्रह्म के साथ ब्रह्म विद्या का अटूट बंधन है।। सरस्वती आकाश विद्या है।। वह आकाश का छोरूं है। अंजना वायु विद्या है। द्रौपदी-कृष्णा अग्नि विद्या है।। वृक्ष का पालन करना भूमि विद्या है।। बापू ने वृक्ष देवो भव: और वृद्ध देवों भव: का नाद भी करवाया।। कागभुसुंडि पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते हैं। आम के नीचे पूजा, पिपली के नीचे जप और वटवृक्ष के नीचे कथा करते हैं।। कैलाश में मकान नहीं लेकिन वट वृक्ष है।। वृक्ष की यह महिमा है।। मुंडक उपनिषद में कहा गया ऐसा आदमी के पास साध्य रखो जो कर्तव्य परायण होता हो।।मुंडक उपनिषद में एकर्षि की व्याख्या आई। कोई एक ही अपनी मौलिक श्रद्धा से ऐसे यज्ञ करवाता है वह एकर्षि है। वृक्ष बोने के लिए जो गड्ढा करते हैं वो यज्ञ कुंड समझो।। सभी चोर अपने आप नहीं कहते कि मैं चोर हूं! वैसे वक्ता भी किसी और के वचन अपने नाम लेकर प्रज्ञा चोरी भी करते हैं।। तुलसी जी ने सभी विद्या के बारे में कहा वैसे खेती-बाड़ी,वृक्ष, वर्षा, भूमि आदि विद्या के बारे में कहा।। चंदन चोर वीरप्पन मरने से पहले ऐसा बोला था कि कभी भी वह चंदन के वृक्ष को काटने से पहले उनकी पूजा करने को कहता था, शायद इसीलिए वह जल्दी किसी के हाथ में नहीं आया था।।
संकल्प तब ही सिद्ध होते हैं जब प्राणबल ज्यादा हो प्राण बल बढ़ाने के लिए हनुमान की उपासना करनी चाहिए ।।बापू ने कहा हनुमान जी के उग्र रूप की साधना के बजाय सौम्य रूप की साधना करो।। जैसी साधना करें ऐसे लक्षण हमारे अंदर उतरते हैं। लंबे मंत्रों के बजाए हनुमान चालीसा का पाठ करो। क्योंकि वह सिद्ध भी है और शुद्ध भी है।। यदि ११ हनुमान चालीसा ना कर सको तो नव,पांच,तीन,एक भी करो या तो कोई करता हो वहां बाधा ना करो।। क्योंकि हनुमान चालीसा आदि चालीसा है। धर्म संकट, प्राण संकट, राष्ट्र संकट, परिवार संकट किसी भी संकट में हनुमान चालीसा हमें उगारता है।।
हनुमंत वंदना के बाद नाम वंदना का प्रकरण का गायन हुआ और बापू ने कहा कि मैं आपका नाक प्रतिष्ठा नहीं मांगता।आपकी आंख नहीं मांगता। लेकिन आपके दो कान मांगता हूं। कान राम कथा के लिए पेटेंट करो तो आपका बेड़ा पार हो जाएगा! तुलसी जी ने राम कथा की रचना की। चारों घाट पर चार वक्ताओं और एक-एक श्रोता के सामने राम कथा का गान हुआ।।बापू ने कहा कि सभी के पास एक-एक श्रोता है कथा भीड़ का विषय नहीं कथा एकत्व का विषय है।। और तुलसी जी ने शरणागति के घाट पर संवत १६३१ की रामनवमी के दिन अयोध्या में रामचरितमानस का प्रकाशन किया।।