Homeगुजरातयोगी वह है जो गुणातित है।।

योगी वह है जो गुणातित है।।

*जिन्हें मिट्टी,लोहा और सोना समान दिखता हो वो योगी है।।*
*गुणातित अवस्था का भी एक रस होता है।।*
*जिन्हें कोई व्यक्ति,विचार,घटना पर संशय न हो वो योगी है।।*
*रामकथा साधु का स्वयंवर है।।*
*कलयुग में सार्वभौम,सरल,सफल साधन नाम है।।*
जीन की पवित्र और अखंड ज्योत को १९४ साल हुए है ऐसे विख्यात संतराम मंदिर की छॉंव में बह रही रामकथा के दूसरे दिन आरंभ में गीता प्रचार अंतर्गत श्रीमद भगवत गीता जी के श्लोक पर आधारित शत कथाओं का पुस्तक ‘गीता ग्यान संस्कार’-जिसे  डो.प्रणव देसाइ ने संपादित किया है व्यासपीठ द्वारा ब्रह्मार्पित किया गया।।
ये पुस्तक गुजरात की स्कूलों में भी भेजा जायेगा।।संपादक ने अपने भाव रखे।।
हररोज विशिष्ट वक्ताओं की श्रेणी में शिव तिर्थ आणदाबावा आश्रम-जामनगर से देवीप्रसाद जी ने अपने विचार प्रस्तुत किये।।वडोदरा रामस्नेही संप्रदाय के रामप्रसाद जी की विशेष उपस्थिति रही।।
यहां अनेक कथाकारो का मिलन रुप कथाकार त्रिवेणी का योग भी बना है।।
कथा के आरंभ में बापू ने कहा रामदास जी बापू ने ‘योगीराज मानस’ ग्रंथ लिखा वहां रामचरितमानस के आधार पर अपनी सुमति के द्वारा पंक्तियों का श्रृंगार किया है।जब संतराम महाराज के साथ संवाद हुआ था तब महाराज ने खेचरी और शांकरी योग विद्या के बारे में बताया था।।वहां इडा,पिंगला और सुषमणा यह तीनों के संगम के बारे में भी बताया था यह बहुत गहन विषय है और महाराज जैसे पहुंचे हुए महात्मा यह कर सकते हैं।लेकिन तुकाराम जी ने कहा है:विट्ठल का नाम लिया तो सब योग आ गए!
शिव योगी है।हनुमान जी भी योगी है।एक परम वक्ता है एक परम श्रोता है।लेकिन दोनों को में एक ही साथ रखूंगा।हमारे यहां वेद विद्या,योग विद्या, अध्यात्म विद्या,लोक विद्या और ब्रह्म विद्या है।वैसे धर्म,अर्थ काम और मोक्ष को भी विद्या कहा गया है। रूमी का एक वाक्य है:साइलेंस इस नॉट एम्प्टी बट इट इस फूल का आंसर्स(मौन- सन्नाटा खाली नहीं लेकिन कहीं जवाबों से भरा हुआ होता है)
ज्ञानेश्वरी ने कहा है कि योगी का वर्ण भी बदलने लगता है।वजन कम नहीं होता लेकिन शरीर हल्का हो जाता है।।
तुलसीदास जी ने योगियो के लक्षण के बारे में लिखा है:
*अगुन अमान मातु पितु हीना।*
*उदासिन सब संसय छीना।।*
खग की भाषा खग ही जानता हो ऐसे एक योगी नारद एक दूसरे योगी का परिचय हमें देते हैं।।भगवान शिव अगुन-निराकार है। सत्व रज और तम से बाहर है।।योगी वह है जो त्रिगुणातित है। जिन्हें मिट्टी लोहा और सोना समान दिखता हो।।तत्व त: तीनों जमीन में से ही निकलते हैं लेकिन हम आकाश में बहुत उड़ान करते हैं इसलिए जमीन का अभ्यास छूट गया है! सोना में से कुछ नहीं निकलता लेकिन मिट्टी में से सृजन होता है। लोहे को जंग ही लगता है।।यह तीनों को इस तरह देखे वह योगी है। जिन्होंने अपने ज्ञान विज्ञान के बाद तृप्ति पायी है वह योगी है।। गुणातित अवस्था का भी एक रस होता है।।इंद्रियातित होते हुए भी जो रस ले वह योगी है।।अगुन होना सबसे बडा सद्गुण है। हनुमान जी अगुन है क्योंकि वो सकल गुणनिधान है। दूसरा लक्षण:अमान है-जो निर्मानी रह सके वह योगी है। जिन्हें कोई मां-बाप नहीं।योगी मृत्यु पर विजय पाते हैं मृत्यु उसीका होता है जो जन्मे है। जो उदासिन स्थिति पर पहुंचे। जहां तटस्थ नहीं लेकिन मध्यस्थ कूटस्थ भाव की स्थिति आ गई वो योगी है।। जीवन के तमाम संशय-वैसे 32 प्रकार के संशय दिखाये है वह निर्मूल हो गया हो वह योगी है।। जिन्हें कोई व्यक्ति,विचार,घटना पर संशय न हो वो योगी है।। शिव की जटा को वजन नहीं श्रृंगार कहा है।।
रामकथा साधु का स्वयंवर है,यह 52 फूलों की माला लेकर निकला हूं और किन श्रोता के गले में वर्णमाला डालना वो नक्की करता हूं।।
योगी की जटा में से गंगा निकलती है। जिनका मन निष्काम है। किसी के पास कुछ नहीं चाहिए और किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करता तो वह मन निष्काम है।।योगी नग्न होता है इसका मतलब वह आरपार है।। योगी का वेश ऊपर से अमंगल लेकिन अंदर से मांगल्य का खजाना भरा है। हनुमान जी अजन्मा नहीं लेकिन हनुमंत तत्व अंदर से प्रकट हुआ है वह न्याय से शिव रूप से अजन्मा है।। सभी लक्षण हनुमान में है।
साधु का मतलब क्या है?जो साहस करें,सावधान रहे,समाधान दे,संवाद करें,स्विकार करें,संयम में से गिरे नहीं और समदर्शन रखे वह साधु है।।
वाल्मीकि जी भी योगी है।नारद,जनक राज योगी है शबरी योगिनी है।।
कथा क्रम में सिताराम की वंदना करके माता द्वारा निर्मल बुद्धि पा कार सीताराम तत्वत: एक ही है वह वंदना गाई गई।। रामनाम रूपी महामंत्र की वंदना और रामनाम महिमा के आधार पर पूरा नाम चरित का गान किया गया।।
ध्यान सतयुग का धर्म है।यज्ञ त्रेता का,पूजा अर्चना द्वापर का धर्म है। हर एक युग को अपना धर्म स्वभाव होता है। हरि का नाम यह कलयुग का धर्म है। कलयुग में सार्वभौम,सरल,सफल साधन नाम है
ये परम पवित्र ज्योत को २०० साल होंगे तब २०३१ में योग बना तो यहां मानस दीप शिखा विषय पर कथागान का मनोरथ है।।बापु ने वो बीज पंक्ति भी बताइ:उत्तरकॉंड की पंक्ति है:
*सोहमस्मि इति वृत्ति अखंडा।*
*दीप सिखा सम परम प्रचंडा।।*

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