*बापु ने अपने कूल की नहीं,मूल की बात बताइ।।*
*अनुकरण एक प्रकार का मरण है।।*
*अनुराग की छाया में मुझे विराग चाहिए।।*
*अखंड है वह ब्रह्म है।।*
*मंत्र जपना पड़ता है,नाम का स्मरण होता है।।*
*जप से सिद्धि और स्मरण से शुद्धि मिलती है।।*
*जप अकेले में और संकीर्तन समूह में,आंसुओं के साथ होता है।।*
पतित पावनी मॉं गंगा के तट पर देवभूमि तपोभूमि ञषिकेश से प्रवाहित रामकथा के दूसरे दिन अविरत अखंड अश्रु प्रवाह से बापू की बानी बहती रही।।विद विद जिग्यासायें उठी।।मानस के सात सोपान है तुलसीदास जी हर एक सोपान के बाद फलादेश बताते हैं।।६वकांडों में तुलसी जी ने अपना नाम नहीं लिखा। एक कांड में नाम लिखा है,आखिर में। ऐसा क्यों?
जवाब देते हुए बापू ने पंडित रामकिंकर जी महाराज की बात कही।।रामकिंकर जी महाराज के शरणागत पूज्य मैथिली शरण जी ने पूछा था वह दोनों के बीच में जो संवाद हुआ वह मैं आपके सामने रखुं।।
लेकिन पहले स्पष्टा करते हुए बापू ने कहा पंडित रामकिंकर जी जी की शताब्दी में गत 30 तारीख को गया।।वहां संचालक श्री ने ऐसा निवेदन किया आज के सभी वक्ता पंडित रामकिंकर जी महाराज का अनुकरण कर रहे हैं।।बापू ने कहा मेरी साधु का खंडित ना हो ऐसे विनम्र भाव से कहता हूं हम पंडित जी का अनुकरण नहीं करते।।उनके सूत्र जो मेरी आत्मा तक पहुंचाते हैं मैं अपनी शैली में प्रस्तुत करता हूं,नकल नहीं करता।।मैं नाम लेकर प्रसाद बांटता हूं।। एक वक्ता ने कहा कथाकार हिंदी अंग्रेजी और उर्दू शब्द भी डालते हैं। यह मीठा प्रहार किस पर है मैं समझता हूं! लेकिन ब्रह्म विचार में भाषा को क्यों बीच में डालते हो! प्रहार करने वाले हाथ में तुलसी दोहावली का प्रसाद देना चाहता था शर्दी कम करने के लिए कंतान, सॉल पहनो क्या फर्क पड़ता है?अनुकरण एक प्रकार का मरण है। जहां मौलिकता निजता नहीं वहां मृत्यु है।।
बालकांड में तुलसी जी ने लिखा है:
*सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहि सुनहि।*
*तिन्ह कहुं सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।*
बालकांड के पाठ से उत्साहवर्धन होगा। तीसरी सोपान के समापन में फलादेश है:भगवान राम का यश जो गायेंगे विराग,जप योग के साधन बिना राम भक्ति प्राप्त हो जाएगी।।चौथा सोपान किष्किंधा कांड के समापन में लिखा:संसार के रोग की औषधि भगवान की कथा वो मनोरथ सफल होंगे।। किष्किंधा कांड में तीन ब्रह्म की भेंट हुई है। वेद का शांति मंत्र जो हम बोलते हैं वहां 11 प्रकार की शांति के बारे में लिखा है।। वहां लिखा है ब्रह्म में शांति हो ब्रह्म क्या अशांत है? ब्रह्म स्वयं शांत है दूसरों को शांति देने वाला है।।आदमी अकेला शांत है वह भी अच्छा लेकिन बुद्ध पुरुष औरों को भी शांति देते हैं हनुमान जी ने अकेले 11 लोगों को शांति प्रदान की हमारी शांति खंडित है।शांति भी शाश्वत होनी चाहिए।
ब्रह्म के कई अर्थ है।ब्रह्म का मतलब: राम,सियाराम, कृष्ण,राधे कृष्ण,शंकर,उमाशंकर,हनुमान,राम, वेद, ब्रह्मांड,वाणी,शास्त्र,ग्रंथ, सद्गुरु साक्षात पर ब्रह्म है। ब्रह्म विद्या भी ब्रह्म है। नरसिंह मेहता लिखते हैं ब्रह्म के सामने ब्रह्म खेलता है।कहने वाला भी ब्रह्म सुनने वाला भी ब्रह्म। सर्व खलु इदं ब्रह्म।।
सुंदरकांड के समापन में लिखा है:बिना जलपोत भव सिंधु पर करेगा। लंका कांड का आश्रय करेगा वह विजय विवेक और विभूति प्राप्त करेगा। विजय के बाद विवेक जरूरी है।।उत्तरकांड का फल है पतंजलि ने जो अविद्या बताई है अविद्या के क्लेश भगवान हरण कर लेंगे।। लेकिन एकमात्र दूसरे अयोध्या कांड में तुलसी ने अपना नाम लिखा है। तुलसी को कोई मनोरथ सिद्ध नहीं करना,कोई क्लेशों से मुक्त नहीं होना,किसी दृढ़ वस्तु का काम नहीं,भव रोग से मुक्त नहीं होना है।। तुलसी जी को दो चाहिए:एक अनुराग दूसरा विराग।। अपनी बात आती तो अपना नाम हम लेते हैं।।तुलसी कहते हैं अनुराग की छाया में मुझे विराग चाहिए।। तथा कथित वैराग में लोग निरस हो जाते हैं। यह नहीं खायेंगे, यह नहीं देखेंगे, यहां नहीं बैठेंगे…
परमात्मा से मां गंगा के तट पर प्रार्थना करें हमें अनुराग की छाया में वैराग्य की प्राप्ति हो।।
बापू ने बुद्ध की जातक कथाओं में से एक कथा भी सुने और कहा ब्रह्म विद्या,ब्रह्म विचार,ब्रह्म सुख, ब्रह्म वेद बोलने में भी रस पड़ता है।।अखंड है वह ब्रह्म है।।
फिर बापू ने बहती हुई अविरत अश्रु धारा से अपने दादाजी के बारे में मूल बातें बताते हुए कहा दादाजी विष्णु दास हरियाणवी नाम।। त्रिभुवन दादा के सबसे छोटे।।त्रिभुवनदास दादा के बाद जादवदास बापू, हमारे भीखाराम काका के पिता और मणिमा जो भीखाराम काका की माता है।। वह मंदिर में आरती करते, कभी मुझे भी आरती करने का सौभाग्य मिला।। विष्णु दास दादा कैलाश के महामंडलेश्वर रहे।।हम कहने में बैरागी बावा है लेबल तो लगा है लेवल है कि नहीं वह छोड़ो! और निंदा और उपहास करने के लिए हमें मार्गी भी कहते हैं।।
विष्णु दास दादा ने विवाह नहीं किया। संकेत लगता है त्रिभुवन दादा ने दबाव नहीं डाला होगा। फिर घर में बात कही घर छोड़ना चाहता हूं। सबसे ज्यादा पीड़ा हुई थी अमृत मॉं को। अमृत मान के देवर थे फिर वह सौराष्ट्र की यात्रा में गये।। फिर काशी आए दंडी आश्रम में संस्कृत पढे। प्रकांड संस्कृत पढ़कर पंडित बने। स्वामी शरणानंद जी भी वहां पढ़ते थे संस्कृत के शीघ्र कवि थे।। वेदांत रत्नाकर में छंदों को संस्कृत में डाला।।फिर छात्र के रूप में रहे उत्तर की तरफ यात्रा करते हुए घूमते घूमते ऋषिकेश आए क्या करना है?कहां जाना है? कुछ नहीं मालूम था लेकिन गंगा में स्नान किया। मुनि की रेत से भी गुजरे होंगे! कैलाश आश्रम से अनेक विभूति गुजरी स्वामी विवेकानंद जी, शिवानंद योगी सब गुजरे दादा विद्या वाचस्पति कहलाते थे।। उसे देखकर पढ़ाई हो जाती थी।।फिर वहां संन्यास का निर्णय किया।पूछा गया कीस कूल से, कहां से,क्यों दीक्षा लेनी है?जवाब में सन्यास दिखता है। दादा ने कहा मैं सबको भूल कर आया हूं।। कैलाश पीठाधीश को लगा होगा संन्यास के अधिकारी है।।प्रैक्टिकल भी बहुत रहे होंगे। सन्यासी सीये हुए कपड़े नहीं पहन सकते। लेकिन इन कपड़ो में असुविधा बहुत होती है उस काल में, जिसे मैं विष्णु युग कहता हूं ऐसे वस्त्र से मर्यादा भंग होता था तो दादा ने क्रांति की और सिलाई की हुई वस्त्र पहनना शुरू किया और कहा कि वस्त्र के कारण सन्यास खंडित नहीं होता।।
तलगाजरडा के घर में मर्यादा पुरुषोत्तम की भक्ति थी यह प्रमाण मिलता है।।
महामंडलेश्वर पद देने की बात हुई तो भागे, मुझे नहीं चाहिए, मैं गंगा में कूद पड़ूंगा। गुरुजनों के आदेश से फिर पद का स्विकार किया। लेकिन पद का भार नहीं लगा।। जब तक आश्रम में रहे विकास नहीं किया। कहते थे सीमेंट और ईंटों के ट्रक गिनने में सन्यासी नहीं बना हूं।। सामने विश्राम स्वरूप महादेव है उसको भजो।। हमारा दुर्भाग्य समझो तलगाजरडा छोड़ने के बाद कभी गुजरात नहीं आए और गौरव समजू तो सन्यासी ऐसे ही होता है।। मुंबई तक प्रवचन के लिए आते थे। हमारे एक दादा बनमाली दास ने पत्र लिखा विष्णु दादा मुंबई आ रहे हैं।।मेरे त्रिभुवन दादा सफेद वस्त्र में परम सन्यासी थे कहा कि अच्छा लगेगा, लेकिन मेरे जाने से संन्यास में खलेल पहुंचे। बहुत कहा तब त्रिभुवन दादा गए तब गौरव प्रद माधव बाग में प्रवचन होते थे। दादा गए मिले और कहा कि हम कुछ नहीं बोले। दोनों के आंख के कोने भीगा रहते। देखते रहते थे। उसे पता नहीं था अमृत भाभी(अमृत मॉं)है कि नहीं। जब मेरे दादा खड़े हुए तब पूछा कि मेरी माता स्वरुप अमृत मॉं कैसी है! फिर दादा तलगाजरडा आ गए। वहां विष्णु दादा ने महामंडलेश्वर पद छोड़ दिया। ट्रस्टी कहते थे विकास करो। छोड़कर एक कमरे में रहते थे।उम्र होते ही उत्तरकाशी की तरफ आरोहण किया और सही में चमत्कार हुए ऐसी भी बातें हैं। राजस्थान में अकाल पड़ा था लेकिन यह सब बातें मैं कहना नहीं चाहता।।
उत्तरकाशी के एक कमरे में रहते थे जिग्यासुं लोगों को जवाब देते और मौन हरि स्मरण करते। एक बार गुजरात के हमारे गांव से चार धाम यात्रा निकाली साधु और ब्राह्मण को मुफ्त में ले जाते थे। प्रभुदास बापू को कहा गया वहां विष्णु दादा मिलेंगे। प्रभु दास बापू गए। कुछ बोल नहीं लेकिन प्रभुदास बापू का कंधा पड़कर दादा ने परिक्रमा की।।
बापू ने कहा मैं मेरे कूल की नहीं मेरे मूल की बात करता हूं।। जब हमने प्रभु दास बापू को पूछा कि क्या लाए तो जवाब सुनिये:वह बोले उसने कुछ दिया नहीं मैंने कुछ मांगा नहीं। कंधा लेकर आया हूं इस कंधे को छू लो जहां एक परम सन्यासी का हाथ रहा है।। यही हमारी संपदा है।। और पोस्टकार्ड लिखकर कहते थे रामचरितमानस हमारा मूल ग्रंथ है बच्चों को भागवत गीता भी पढ़ाना।।
हमारे में अग्नि संस्कार नहीं होता। भूमि समाधि होती है। दादा की जल समाधि गंगा में पत्थर पेट पर बांधकर बहा दिए गए। सन्यासी अग्नि और स्त्री को छू नहीं सकते। मैं गंगा स्नान करता हूं तो लगता है विष्णु स्नान करता हूं ऐसा भाव होता है।। और बहुत भावुक होकर बापू ने कहा कि गंगा के प्रवाह में आपके शरीर को बहा दिया। हमें यह समाचार उस दिन नहीं मिले।कुछ दिन बाद पता चला दादा निर्वाण पद को पा गए हैं।। वैसे हमारे वहां चूल्हा कम जलता था भीक्षा प्राप्त कर लेते थे। लेकिन तीन दिन सावित्री मां ने रसोई नहीं की और गांव में मालूम हुआ तो पूरे गांव ने खाना नहीं खाया।।
बापू ने कहा हे दादा! हमने आपको निरखा भी नहीं और परखा भी नहीं!!
कथा प्रवाह में हनुमंत तो वंदना के बाद राम कार्य में सहयोग किया वह सब की वंदना की गई।।जनक सुता जग जननि जानकी की वंदना के बाद नाम वंदना का बड़ा प्रकरण बताया और कहा मंत्र जपना पड़ता है।नाम का स्मरण होता है।।जप से सिद्धि और स्मरण से शुद्धि मिलती है।। जप अकेले में और संकीर्तन समूह में आंसुओं के साथ होता है।।
*देखा किताबें खोलकर इश्क के पन्नों पर।*
*अव्वल भी तेरा नाम था आखिर भी तेरा नाम था!*