*गुरु में राग है तो द्वैष की संभावना है,इसलिए गुरु में अनुराग होना चाहिए।।*
*गर्व हरदम अपने को प्रस्तुत करता है गौरव अन्य का स्विकार करता है।।*
*हनुमान जी स्वयं कोटेश्वर है।।*
*राम सत्य है-सत्य ईश्वर है।।*
*कृष्ण प्रेम है प्रेम सर्वेश्वर है।।*
*शिव शंकर करुणा है करुणा परमेश्वर है।।*
*नाम परम विश्राम है।।*
अनेक जीवंत समाधियों,उपासकों की पीरारी कच्छ धरा,झूलेलाल मंदिर-कोटेश्वर(कच्छ) से बह रही रामकथा के दूसरे दिन ये धरा के सभी उपासकों को प्रणाम करते हुए बापु ने कहा ईश्वर के लिए इश शब्द भी है।।उपनिषद में ईशावाश्य उपनिषद है। भगवान पतंजलि योग सूत्र में कहते हैं:पांच क्लेशों से मुक्त है वह ईश्वर है।।राग,द्वेष,अस्मिता, अभिनिवेश और अविद्या पांच क्लेश है।।राग और द्वेष सापेक्ष है।। किसी के प्रति राग हुआ तो द्वैश होने की पूरी संभावना है।।यदि राग दिशा,स्थान बदले वहां द्वेष प्रकट होगा।। इसलिए अध्यात्म जगत में गुरु और शिष्य के बीच में द्वेष ना हो इसका मंत्र है।।गुरु में राग है तो द्वैष की संभावना है इसलिए गुरु में अनुराग होना चाहिए।।
बहुत लोग लिखकर सद्गुरु के बारे में बहुत कहते हैं वही व्यक्ति गुरु के तरफ द्वेष भी रखते हैं! इसलिए उपनिषद का मंत्र सावधान करता है।।राजटग और द्वेष एक ही सिक्के के दो पहेलु है।।यदि हमें कोई ईश्वर कहे,गीता कहती है मैं ईश्वर,बलवान, सुखी लेकिन वह हमने खुद ने तय की हुई वस्तु है।। जिसे किसी के तरफ राग नहीं।। अविद्या से बंधन आता है अस्मिता अच्छा शब्द है,लेकिन एक और अर्थ गौरव होता है।। गर्व को पॉलिश करके गौरव कहकर हम रखते हैं।। गुरु का,हरि के नाम का,शास्त्र का, सनातन धर्म का गौरव होना चाहिए, ठीक है।। हम गर्व भी बोलते हैं। गर्व हरदम अपने को प्रस्तुत करता है गौरव अन्य का स्वीकार करता है।। भारत का हूं, सनातनी हूं उनका गौरव होना चाहिए।। सीन(SIN) का अर्थ है पाप और सन(SUN)का मतलब सूर्य है सीन के बीच में आई है और सन के केंद्र में यू है इसलिए गौरव है।।जिसके केंद्र में मैं हूं वह पाप है और केंद्र में आप है वह गौरव है।।
अस्मिता भी क्लेश है।।अस्मिता पर्व गुरुकुल में चलता रहा, बहुत चला लेकिन वहां से भी हमने मुक्ति ले ली।।अविध्या भी बंधन में डालती है।।
अभीनिवेष का मतलब बहुत जीने की इच्छा। लेकिन भजन के लिए,सेवा और स्मरण के लिए जीना चाहिए।।
पांच क्लेशों से मुक्त है वह ईश्वर है। हनुमान जी को भी हम ईश्वर कहते है।। श्रीमद् भागवत में 11 रुद्र की बात की है। हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी क्लेश खत्म होते हैं।।लंका में कोट पर हनुमान चढ़े हैं इसलिए वह कोटेश्वर है।। हनुमान जी स्वयं कोटेश्वर है।। एक रूद्र रैवत है,मतलब दौडने वाला होता है। जिनका बहुत महिमा है वह ईश्वर है। वेद से लोक तक महिमावंत है वह ईश्वर है।।किसी भी ग्रंथ में आदि मध्य और अंत में एक ही तत्व प्रतिपादित होता है वह ईश्वर है।। रामचरितमानस के आधार पर राम परम है। ईश्वर है।। हमारे निंबार्की परंपरा में कृष्ण सर्वेश्वर है और भगवान शिव परमेश्वर है, कोई गांठ लगा कर बैठा है तो क्या करें! जिनका बहुत आश्रय करते हैं उनके वश होना पड़ता है।। शरीर का आश्रय किया तो शरीर धर्म के वश में रहना पड़ता है।।राम सत्य है-सत्य ईश्वर है।। कृष्ण प्रेम है प्रेम सर्वेश्वर है।।शिव शंकर करुणा है करुणा परमेश्वर है।।
वाल्मिकी जी लिखते है:
*सत्यमेवेश्वरो लोके सत्यं धर्म: सदाश्रित:*
*सत्यमुलानी सर्वाणि सत्यानास्ति परंपदं*
सत्य ईश्वर है।सत्य ही धर्म का आश्रय है। सत्य पूण्या है,धर्म सत्य प्रतीक है। सत्य सब की जड़ है। सत्य के सिव जगत में कोई परम तत्व नहीं है।।
राम ईश्वर,कृष्ण सर्वेश्वर,शिव परमेश्वर है।।कोटेश्वर परमेश्वर है।।
शून्य और पूर्ण साधु के दो चरण है। एक ज्ञान की तरफ एक समाधि की तरफ ले जाता है।। इतनी जगह पर रुचि केंद्रित हुई तो ध्यान मार्ग में प्रवेश होता है:आग्या रुचि, सूत्र रुचि, ग्रंथ रुचि,नाम रुचि, श्रवण रुचि,रूप रुचि,लीला रुचि,धाम रुचि।।संगीत में भी रुचि है लेकिन राम रुचि हमें नजदीक पड़ती है।। नाम लेते हैं सब थकान दूर होती है। नाम परम विश्राम है।।
कथा प्रवाह में वंदना प्रकरण में युवाओं को कहा देह सेवा,देव सेवा,दीन सेवा,दिल सेवा,देश सेवा करना।।
सीताराम की वंदना के बाद राम नाम महामंत्र और नाम महिमा नाम वंदना का गायन हुआ।।